डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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“दादाजी! आज शहर का माहौल देखने लायक था!”
“क्या खास बात देखी तुमने ?”
“जब मैं कॉलेज जा रहा था, तब हाथ में तिरंगा लिए ‘भारत माता जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए हजारों लोगों का जुलूस मैंने देखा! जब लौट रहा था, तो मोटरसाइकिल रैली में सैकड़ों युवक हाथ में तिरंगा लिए ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते दिखे।”
“हाँ बेटा…, मैंने अखबार में पढ़ा था कि घर-घर में झंडे लगाए जाएंगे…। कार्यालयों मैं विद्युत सज्जा होगी!”
“….हाँ दादाजी, ऐसा लगता है कि आज सारा नगर राष्ट्रीयता के रंग में ही रंग गया!”
“बेटा, मैंने भी अपने समय ऐसा ही उत्साह देखा है… अफसोस यह है कि यह राष्ट्रप्रेम १ दिन रहता है और अगले दिन से सब ट्रैफिक में नियम तोड़ने लगते हैं… और देश के कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ने लगती हैं!”
“झंडावंदन के समय यही बात हमारे कॉलेज के प्राचार्य जी ने कही थी… कि दु:ख होता है कि हमारे यहाँ राष्ट्रीय दिवस वाली राष्ट्रीयता, दूसरे ही दिन सूखे पत्तों- सी बिखर जाती है!”