रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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कामवाली शीनू की बातें सोच-सोच कर रिद्धिमा उलझन में थी… डाईनिंग टेबल को सजाती हुई वह पति सुलभ से बोली-
“अगर स्त्री का एक महत्वपूर्ण अंग ही कट जाए, तो उसको जीने का कोई अधिकार नहीं होता है ? वो पृथ्वी पर बोझ बन जाती है क्या सुलभ ?“
२ साल से ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित अपनी पत्नी को प्यारभरी नज़रों से देखते हुए सुलभ समझ गया कि सुबह-सुबह शीनू, रिद्धिमा से खुसर-पुसर कर रही थी, उसी ने इसके दिमाग में ये उल्टे-सीधे भाव भरे हैं। वह बोला…“यह तुम अपने लिए कह रही हो ? अरे! एक छोटा- सा अंग ही तो कटा है न ? छोड़ो उसके बारे में सोचना! उस अंग के न होने से क्या हुआ, बताओ ? तुम तो मेरा जीवन हो रिद्धि! मैं तो तुम्हारी उपस्थिति से जीता हूँ और तुम्हारी वैचारिक मजबूती का कायल हूँ पगली! शरीर तो सबसे बाद में आता है न ?” कहते हुए सुलभ की आवाज़ भर्रा गई।
“आइंदा इतना बुरा विचार अपने मन में न लाना,” कहते हुए सुलभ ने रिद्धिमा को कसकर गले से लगा लिया।
और सुलभ के कन्धे पर सर टिकाए हुए रिद्धिमा सोच रही थी कि… “शीनू ने तो यूँ ही डरा दिया था, मेरा सुलभ तो आज भी मुझसे उतना ही प्यार करता है!”