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सूझे ना जब कोई निदान,पुस्तक से मिले समाधान

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

यह निर्विवाद सत्य है कि पुस्तक इन्सान की सबसे बढ़िया दोस्त,साथी व मार्गदर्शक होती है। पुस्तक ज्ञान का भंडार होती है। फिर चाहे वे धार्मिक हो, शैक्षिक या मनोरंजक हो। हमारे वेद पुराणों के समय से,जबसे उन्हें पुस्तकों के रूप में लिखा गया है,तब से लेकर आज एवं आगे आने वाले समय में भी पुस्तक के महत्व एवं उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। इसके बावजूद आज के समय में संगणक (कम्प्यूटर) और अंतरजाल (इन्टरनेट) के प्रति लोगों का लगाव अधिकाधिक हो जाने से पुस्तकों का महत्व कम होता दिखाई दे रहा है। वर्तमान में पुस्तक का उपयोग करना आजकल की पीढ़ी को कठिन लगता है,क्योंकि उनके हाथ में उनका अपना गूगल सदैव रहता है और वे उसी से प्रभावित हैं,किन्तु उसके दुष्परिणाम भी जग जाहिर हैं। सभी जानते हैं कि, अंतरजाल पर लगातार बैठने से आँखों और मस्तिष्क पर भी बुरा असर अनुभव किया जा रहा है। इसी कारण पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करने की आवश्यकता महसूस हुई। दूसरे शब्दों में जब पुस्तकों से लोगों का लगाव कम होना परिलक्षित हुआ,तब १९३ सदस्य देश तथा ६ सहयोगी सदस्यों की संस्था संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन(यूनेस्को) को किताबों और मनुष्यों के बीच बढती दूरी को पाटने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाने का सोचना पड़ा।
२३ अप्रैल १९९५ को पहली बार ‘पुस्तक दिवस’ मनाया गया। यह दिवस साहित्यिक क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है,इसलिए ही इसका चयन एक निश्चित विचारधारा के अंतर्गत किया गया था।
भारत में भारत सरकार ने २००१ से इस दिन को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के रूप में मनाने की मान्यता दी।
इस तरह अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा विकास की भावना से प्रेरित होकर आज विश्व के लाखों नागरिक,सैकड़ों स्वयंसेवी संगठन,शैक्षणिक-सार्वजनिक संस्थाएँ,व्यावसायिक समूह तथा निजी व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति पुस्तक दिवस मनाते हैं।
किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर शहर के विभिन्न स्थानों पर सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बाँटने जैसे आयोजन किये जाते हैं,वहीं पुस्तकालयों में विचार गोष्ठी आयोजित कर सभी को समझाया जाता है कि, पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं,बल्कि कला,संस्कृति, लोकजीवन,सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। सभी को यह भी बताया जाता है कि पुस्तकें ही हम सभी में अध्ययन की प्रवृत्ति,जिज्ञासु प्रवृत्ति,सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार रोपित करती हैं। इन गोष्ठियों में किताबों के चयन और लेखन दोनों पर खुल कर विचार-विमर्श भी किया जाता है।
निष्कर्ष में यही कि,किताबें सोच बनाने व बदलने का माद्दा रखती हैं,क्योंकि किताबें हमें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों काल की जानकारी देती है। इसी कारण से ही कहा जाता है कि,एक अच्छी किताब हमें सफलता के शिखर तक पहुंचाने में सहायक हो सकती है। इसलिए जो भी व्यक्ति पढ़ेगा,लिखेगा फिर उस पर अमल भी करेगा,तो नि:सन्देह वह एक काबिल नेता बन पाएगा। यहाँ नेता से मतलब केवल राजनेता नहीं,बल्कि उस उच्च पद से है जो वो अपने समुदाय,समाज या कहीं और भी हासिल करता है,यानि वहाँ वह अपनी उस अग्रणी भूमिका को सफलतापूर्वक निभा भी पाएगा और यश व सम्मान भी हासिल कर पाएगा। इसलिए ही सुप्रसिद्ध लोकप्रिय अमरीकी नारीवादी लेखिका और साहित्य समीक्षक मार्गरेट फुलर ने कहा था-“आज पढ़ने वाला कल नेता होगा।”
सभी तथ्यों से यह स्पष्ट होता ही है कि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं,ईमानदार साथी भी है और मार्गदर्शक भी,जो प्रत्येक परिस्थिति में बखूबी साथ निभाती है। व्याकरणाचार्य स्व.पंडित कामता प्रसाद की पौत्री तथा भाषाविद् डॉ. राजेश्वर गुरू की विद्वान पुत्री ख्यातिप्राप्त कवियित्री डॉ. अनामिका रिछारिया ने ‘सूझे ना जब कोई निदान,पुस्तक से मिले समाधान’ उल्लेखित कर हम सभी को पुस्तकों से लगाव न छोड़ने का आग्रह किया है। इसलिए,हमें संगण और अंतरजाल पर समय व्यतीत करने की बजाय हमेशा ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों को पढ़ते रहना चाहिए,यानि पठन-पाठन वाली परम्परा कायम रखनी चाहिए,ताकि आने वाली पीढ़ी में ज्ञान हस्तांतरित करने के इस सशक्त माध्यम को गतिशील बनाए रखने में हमारी सक्रिय भूमिका दर्ज रहे।

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