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चारित्र्यशील, धार्मिक और नीतिमान गुण स्वामिनी ‘मंदोदरी’

डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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पंचकन्या (भाग ६)…

प्रात:स्मरण
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा।
पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्॥
आज हम जानेंगे ‘मंदोदरी’ के बारे में, जो असुरों के राजा और स्थापत्यविशारद मयासुर तथा अप्सरा हेमा की अयोनिज कन्या और हमारे प्रातःस्मरणीय श्लोक में गौरवान्वित पांचवी पंचकन्या है! लोककथा और रामायण की कुछ आवृत्तियों में मधुरा नामक एक सुंदर अप्सरा को शिवशंकर से प्रेम हो जाता है। पार्वती की अनुपस्थिति में वह शिव के निकट आती है। पार्वती के वापस आने पर उसे यह विदित होता है, तब पार्वती उसे १२ वर्ष तक मेंढक होने का शाप देती है, परन्तु बाद में शिवशंकर उस पर कृपा करते हैं और वह एक सुन्दर कन्या बन जाती है। मंदोदरी इस नाम का मूल ‘मंडूक’ इस शब्द में है। मंडूक यानी मेंढक, उसकी उत्पत्ति मेंढक से हुई इसलिए उसे शंकर ने मंदोदरी यह नाम दिया, साथ ही उसे वर दिया कि वह एक पराक्रमी शिवभक्त (रावण) की रानी और एका महापराक्रमी शिवभक्त (मेघनाद) की माता होगी। उसी समय मयासुर और हेमा कन्या प्राप्ति के लिए शिव की आराधना कर रहे थे, तभी वे वन में इस कन्या को पाते हैं तथा बहुत हर्षित होकर उसको कन्या के रूप में स्वीकार करते हैं। एक-दूसरे पुराण में वर्णित आख्यायिकानुसार एक मेंढकी को मंदार और उदार नामक २ ऋषियों ने शाप दिया। उसके उपरांत वायू और यम इन देवताओं ने उसे सुन्दर कन्या का रूप दिया। इन २ ऋषियों के नाम से उन्होंने उसका मंदोदरी नामकरण किया।
रामायण में मंदोदरी का अल्प वर्णन है। यहाँ वह रावण की पटरानी के रूप में हमारे सामने आती है। वह सौंदर्यवती तो थी ही, साथ ही धार्मिक, सुविचारसम्पन्न, चारित्र्यशील, निष्ठावान और नीतिमान ऐसी विविध गुणमंडित स्त्री थी। केवल असुर कन्या, असुरों की महारानी, रावण की छाया और अनुगामिनी नहीं; बल्कि अत्यंत रूपवती, मेधावी बुद्धिमती, प्रवीण राजनीतिज्ञ और संस्कारी स्त्री के रूप में मंदोदरी की अलग पहचान होनी चाहिए, ऐसा मुझे प्रतीत होता है। मंदोदरी के ३ पुत्र हुए-मेघनाद (इंद्रजीत), अतिकाय और अक्षयकुमार। रावण पराक्रमी, अति बुद्धिमान, गर्वोन्मत्त और स्त्रीलोलुप राक्षसराज था। उल्लेख के अनुसार मंदोदरी उसके सारे गुण-दोषों सहित उससे नितांत प्रेम करती है, उसकी रावण पर अपार श्रद्धा तथा निष्ठा है। एक आख्यायिकानुसार रावण ने योगियों से प्राप्त रक्त कुछ सिद्धी प्राप्त करने हेतु एक पात्र में और मंदोदरी से छुपाकर रखा था, परन्तु मंदोदरी को जानकारी मिल ही गई। उत्सुकतावश उसने वह रक्त प्राशन किया और गर्भवती हो गई। उससे प्राप्त कन्यारत्न उसने लोक-लज्जा से बचने के लिए एक पेटिका में रख दूर देश भेज दिया।
एक अन्य आवृत्तिनुसार इस कन्या के जन्म लेने के पश्चात् रावण को ज्योतिष ने बताया कि यही कन्या तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी। तब उसने सेवकों को आज्ञा दी कि कन्या को पेटिका में बंद कर दूर देश में जाकर भूमि में दफ़ना देना। आगे जाकर यही पेटिका राजा जनक को प्राप्त हुई और उसमें जो कन्या थी, वही सीता थी। विधि लिखित कभी चूकता नहीं और यही सीता प्रकांड विद्वान रावण के सर्वनाश का कारण साबित हुई।
रावण ने जब सीता का अपहरण किया, तब मंदोदरी ने उसकी बहुत निर्भत्सना की और रावण को लगातार बताती रही,-“सीता को सम्मानपूर्वक राम को लौटा दीजिए।” उसने रावण को सन्मार्ग पर लाने का भरसक प्रयास किया। रावण उसकी सलाह को बारम्बार ठुकराता है, फिर भी वह अपने प्रयत्नों को नहीं छोड़ती। रावण अशोक वन में बंदिस्त सीता को लगातार हर प्रकार से धमकाता है, परन्तु मंदोदरी का दबाव, साथ ही उसके बार-बार किए अनुरोधों के कारण सीता को स्पर्श करने का उसे साहस नहीं होता। अर्थात सीता के परम पावित्र्य की अग्नि की तपिश उस तक पहुँचती रहती है! एक बार तो यह देखते हुए कि सीता उसका कहा मान नहीं रही है, रावण अत्यंत क्रोधायमान होकर उस पर खडग का वार कर उसका वध करने को तैयार होता है, परन्तु मंदोदरी सीता को रावण के क्रोध से बचा लेती है। वह रावण को कहती है,-“आप वीर पुरुष हैं और एक असहाय अबला स्त्री का वध करना आपके यश को शोभा नहीं देता।”
वह पुत्र मेघनाद को भी रावण का साथ न देने के लिए कहती है। उसे सुविचार और सन्मार्ग का स्मरण दिलाती है एवं उपदेश देती है कि वह युद्ध में भाग लेकर अनीति के मार्ग पर न जाए, परन्तु मेघनाद उसका कहा न मानकर युद्ध में भाग लेता है और लक्ष्मण के हाथों उसकी मृत्यु होती है। जब रावण द्वारा विभीषण अपमानित होकर राम का साथ देने के लिए उद्युक्त होता है, तब मंदोदरी इस सत्कृत्य के लिए उसे समर्थन ही देती है। हनुमान सीता की खोज में जब रावण के अंतःपुर में जाता है, तब मंदोदरी का सात्विक सौंदर्य देखकर कुछ क्षण उसके मन में शंका होती है कि कहीं यह सीता तो नहीं…!

(प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की…)