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साल बहुत कुछ सिखा गया

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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बीते वर्ष २०२० में हमने मानसिक तनाव बहुत झेला है। यह कष्ट कई कारणों से रहा, जिसमें प्रमुख रहा चीन पाकिस्तान के साथ युद्ध का भय व ‘कोरोना’ महामारी,परन्तु सभी यह भी जानते हैं कि हमारी सरकार ने चीन व पाकिस्तान दोनों पर अपना दबदबा बनाए रखा और महामारी पर बहुत हद तक काबू भी पाने में सफल रही। इन सभी के बीच बीता साल हमें बहुत कुछ सिखा के भी गया है,और उस शिक्षा ने हमारी सोच व कार्य पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है | अब उस पर ही चर्चा-कोरोना के चलते जो ‘तालाबंदी’ हुई,उसने सीमित संसाधनों में भी कैसे जी सकते हैं,सिखा दिया। ‘तालाबंदी’ के दरमियान हम घर की चार दीवारी में रहने के लिए आवश्यक संयम का महत्व सीख गए। बीते २०२० साल ने हमें हर तरह की समस्या से संघर्ष करना भी सिखाया है।
इसी तरह इसी साल ने हमें स्वयं का काम स्वयं करना चाहिए,के महत्व को बतला दिया। सच में देखा जाए तो देश में हमारे आसपास स्वच्छता, सफाई,जिसका सरकार कई वर्षों से अभियान चलाए हुए थी,उसका सही अर्थों में महत्व बीते साल ने हमें सिखा दिया। हम सभी बिना बाल कटाए, दाढ़ी बनवाए यानि बिना केश कर्तनालय गए भी रह सकते हैं,इसकी पुष्टि भी मिल ही गई।
वैसे तो हम सभी जानते ही हैं कि सावधानी रखना कितनी जरूरी है,लेकिन ‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’ का महत्व इस बीते साल में बखूबी मालूम पड़ा है।
इसी तरह एक-दूसरे की मदद करना भी हमें बचपन से सिखाया गया है,लेकिन इसका महत्व भी बहुत ही बढ़िया ढ़ंग से हमें इस बीते साल में सीखने को मिला है। अन्न की कीमत क्या होती है इसका अनुभव भी हर स्तर के लोगों को देखने को मिला है।मानसिक संतुलन की आवश्यकता क्यों और इसे कैसे बनाए रखना है,इसको भी हमने अच्छी तरह से सीखा है। इसी साल हमने यह भी सीखा कि घर के काम में सभी हाथ बंटाते हैं तो कितनी आसानी से सारे कार्य निपट जाते हैं,यानि हाथ बंटाना भी सिखा गया। प्रकृति को सहेजना चाहिए,यह तो सभी जानते हैं लेकिन उसके प्रभाव का प्रत्यक्ष अनुभव भी बीते साल में हुआ है। बीते साल में अमीरी-गरीबी का भेद जिस तरह से मिटा है,यानि प्रकृति ने किसी से भेदभाव नहीं किया,वह भी एक अलग तरह का अनुभव है। बीते साल ने यह भी अनुभव करा दिया कि सीमित लोगों के साथ कम खर्च में शादी सम्पन्न की जा सकती है। इसी तरह बीते साल ने अंतिम संस्कार की पद्धति ही बदल कर रख दी,जिससे यह स्पष्ट हो गया कि कम लोगों की उपस्थिति में भी अंतिम संस्कार हो सकता है। किसी भी बीमारी से पार पाने में मानसिकता का अलग महत्व है,यही बात यानि आने वाली किसी भी तरह की विपदा को मजबूती से निपटाने की मानसिक तैयारी कैसी हो,यही हमें बीते साल में सीखने को मिला है।
हम सभी प्रायः नित्य ही अपने-अपने पूजा स्थल जाते हीं रहे हैं,लेकिन कोरोना काल में पूजा स्थल बन्द होने से बीते साल ने उस सर्वशक्तिमान प्रभु का घर पर ही दर्शन- अर्चन करना सिखा दिया। बीता साल जीवन का सही मूल्य समझा कर विदा हो गया है।
बीते साल कोरोना के चलते शिक्षा संस्थान बन्द करने पड़े,उस समस्या से निपटने के लिए बीते साल वाले समय ने ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था से उस पर पार पाना सिखाया है। हम अंकीय (डिजिटल) युग में रह रहे हैं,लेकिन उसका सदुपयोग कर हम क्या-क्या लाभ उठा सकते हैं,इस विषय को विस्तार से समझाया और लोगों ने लाभ भी खूब उठाया। प्रायः आम लोग आयुर्वेदिक दवा को अहमियत नहीं देते थे,लेकिन कोरोना के कारण बीते साल में केवल आम लोग ही नहीं,बल्कि ऐलोपैथिक चिकित्सकों ने भी आयुर्वेदिक काढ़ा सभी को नियमित सेवन की सलाह भी दी,और स्वयं भी किया, यानि हमारे वैदिक काल वाली दवा कितनी कारगर है,यह सभी ने माना।

निष्कर्ष यही है कि बीते साल ने हमारी सोच, व्यवहार,चिंतन को नई अनूठी दिशा दी है। बीते साल ने हमें स्पष्ट रूप से समझा दिया है कि सही सोच,हिम्मत और धैर्य से हम सभी प्रकार की मुसीबतों से राहत पा सकते हैं,और इसी सोच अनुसार इस साल टीके (वैक्सीन) के आ जाने पर यह सभी लाभार्थियों तक पहुँचाने में सरकार के साथ सहयोग कर हमें अपनी सहभागिता निभानी है।

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