अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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विजयादशमी पर्व विशेष…
मित्रों, रावण महाग्यानी था या अधर्मी, इसकी बजाए हम अपनी सोचें तो ही जीवन सार्थक हो सकेगा। स्वार्थ छोड़कर, मजहबों में नहीं बंटकर, मतलबों में नहीं उलझकर और भगवान राम की भांति सच्चाई को देखें तथा जीएं तो राम-सा पुरुषार्थी यानी श्रेष्ठ इंसान बनना इतना कठिन भी नहीं है। मेरा अनुभव कहता है कि अपने बुरे कर्म ही रावण (जिस तरह भी) हैं, जिनको अंतिम तौर पर विसर्जित किया जाना होगा। यह बाहर आकर बह गए तो रावणत्व भी चला जाएगा। प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश महाराज की कृपा से अगर हमने अंहकार, स्वार्थ और क्रोध पर काबू पा लिया तो यकीन मानिए कि रावण के दहन की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। ‘मन’-इंद्रियों पर नियंत्रण करने से यह भी हो सकेगा, बस पहले पहल करनी पड़ेगी।
आज भी रावण की बात करने से ज्यादा जरूरी यह है कि राम रूपी सत्य और परिवार-देश की बात करें। इस पर बात करनी चाहिए कि समाज में बेटियों को कोख में जो मारते हैं, सम्पन्न होने पर भी इन्हें बोझ समझकर पढ़ाते नहीं हैं या देश विरोधी कारनामे करते हैं, वे भी रावण ही हैं। इनके बारे में बोलना भी पड़ेगा और रोकना भी पड़ेगा, वरना आपका घर इससे अछूता नहीं रहेगा, क्योंकि आग देख कर नहीं जलाती और बाढ़ किसी के हालात समझकर कोई घर सूखा नहीं छोड़ती। गलत, आतंकवाद और नक्सलवाद का समर्थन करना, हिंसा देखकर चुप रहना या हिंसा सहना भी रावण जैसा अवगुण ही है। इन पर हमें विजय पानी होगी, तभी हम राम के रास्ते पर बढ़ सकेंगे। ऐसा सु-व्यवहार ही ‘मर्यादा’ और आदर्श पुरुष ‘राम’ कहलाता है। अब इस इस कलियुग में किसी सरस्वती या लक्ष्मी नारायण से बहुत अपेक्षा करने की बजाए खुद कॊ बदलिए। उनके नहीं बदलने पर भी उम्मीद की किरण को थामे रखिए। प्रकांड पंडित दशानन की जीवन संगिनी मंदोदरी की तरह उदास रहकर भी बुराई को मिटाने की दिशा में बढ़िए। यह दशहरा ही वह कीमती अवसर है, जब ईश्वर हम सबको भीतर की बुराई को त्यागकर सहजता से राम बनने का अवसर देता है। इसके लिए रावण का अंत सशक्त उदाहरण है कि किस तरह बुद्धिमान रावण का अपमानित और घृणित अंत उसकी एकमात्र बुराई से हो गया था। फिर भी लंकापति की चर्चा करने से अच्छा है कि परिवार, रिश्तों और देश की सोचें। प्रभु राम के काम और आदर्शों को अर्जुन की भाँति लक्ष्य समझकर जीवन रण में रोज भेदें।
जातिगत समर्थन और भेदभाव को छोड़कर पुतले भी मत जलाईए, बल्कि वो ठोस काम कीजिए, जो आपको राम-सा दिखाए। पुतला जलाए बिना भी अपनी कमियाँ छोड़िए। मर्यादा का पाठ पढ़ाने से अच्छी बात ये है कि स्वयं पालन करें, देश अहित न करें।व्यवहार में हम विद्यादान करें, नेत्रदान करें, कन्याओं को बचाते हुए नारी अस्मिता तथा पर्यावरण सरंक्षित करते हुए मर्यादा और शिष्टाचार के साथ सबको जीने दें, क्योंकि इनके बिना यह दुनिया रहने लायक नहीं रह जाएगी। जीवन में रोज के व्यवहार में ईश्वर की भक्ति को ही श्रेष्ठ मानकर कर्म करते रहें तो राम बनना बड़ा सरल होता जाएगा। छोटे-बड़े रावण बनाने की अपेक्षा ऐसी शख्सियत तलाशिए या खुद कि आपको कर्मों से दशरथ का राम माना जाए। जिस तरह मन विचार से, शरीर जल से, बुद्धि ज्ञान से और आत्मा धर्म से पवित्र होना मानी जाती है, वैसे ही खुद को अच्छाईयों के गंगाजल से पवित्र करना पड़ेगा। कभी भी ज्ञान के अहंकार में डूबकर राम बनने की राह से भटकिए मत, बल्कि सत्य से असत्य को हर दिन पराजित कीजिए। विवेक और धैर्य से ध्येय को बाँधे रखिए तथा अपने जनक माता-पिता की सेवा कीजिए। इंद्रियों कॊ भी प्रभु राम जैसा साधिए। आपकी एकता, प्रगति, शांति सब यहीं से आएगी। धर्म के पथ पर चलकर पुण्य कर्म करते हुए अन्याय से बचकर देशभक्त बने रहिए। मौका आए तो सबकी रक्षा भी कीजिए, जैसे राम जी ने की। इस विजयादशमी पर आईए ये शपथ लें कि अपने और राष्ट्र के अंदर की गलतियों-कमियों को मारकर भारतवर्ष को हर बुराई से बचाएँगे। तभी भारतवर्ष प्रगति के पथ पर विजयी ‘विकल्प’ बनकर परचम लहराएगा।
सभी कॊ पुरुषार्थी राम जी बनने की भरपूर शुभकामनाएँ।