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‘महर्षि वाल्मीकि रामायण व समरसता’ पर चर्चा संग हुई गोष्ठी

भोपाल (मप्र)।

अन्तर्राष्ट्रीय संस्था हिंदी साहित्य भारती की भोपाल इकाई द्वारा महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर ‘महर्षि वाल्मीकि रामायण व समरसता विषय’ पर चर्चा आयोजित की गई। २ नवांकुर रचनाकारों का सम्मान भी तरंग काव्य गोष्ठी में किया गया।
इकाई की अध्यक्ष शेफालिका श्रीवास्तव ने सबका स्वागत किया व अतिथियों की ओर से दीप प्रज्वलित किया। अध्यक्षता रामायण शोध केंद्र (भोपाल) के निदेशक राजेश श्रीवास्तव ने की। मुख्य वक्ता के रूप में सुरेश पटवा रहे। आरंभ डॉ. रंजना शर्मा की सरस्वती वंदना और नविता जौहरी द्वारा प्रस्तुत भू-गीत से हुआ। आभासी पटल से निरुपमा खरे को उनकी पुस्तक ‘परवाज़’ और शालू सुधीर अवस्थी को पुस्तक ‘राज-प्रेम अनुभूति, सुखद अहसास’ के लिए नवांकुर लेखन सम्मान से विभूषित किया गया। दोनों रचनाकारों का परिचय डॉ. मीनू पाँडे ने पढ़ा।
वक्ता के रूप में श्री पटवा ने बताया कि रामायण काल वाकई में समरसता का काल है। सभी नागरिक समान थे। श्रुति स्मृति का ज्ञान अद्भुत था। रामायण तात्कालिक समरसता सद्भावना का दस्तावेज है। जहां लक्ष्मण परशुराम से टकराते हैं, वहीं रामचंद्र जी मृदु स्वभाव से स्थिति को संभालते हैं। उक्त कालखंड में रामचंद्र जी ने समरसता का संदेश दिया है। शबरी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि रामायण का मूल स्वर समरसता और परिवार है। रावण और मंदोदरी में भी सद्भावना और समरसता दृष्टिगत होती है।
उपस्थित सदस्यों ने विषय आधारित बहुत सुंदर-सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की। जनक कुमारी ने क्रोंच पक्षी के चोट खाने पर व्यथा से उपजी कविता से समरसता का संदेश दिया। कर्नल गिरजेश, नीलिमा रंजन, सुधा दुबे और वंदना मिश्रा आदि जी ने सुंदर रचनाओं की पंक्तियाँ प्रस्तुत की। युवा कवि दिनेश मकरंद ने भी सुंदर भावों से युक्त कविता पाठ किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में राजेश श्रीवास्तव ने रामायण दर्शन को समाहित करते हुए कहा-“एक समंदर ढूंढ रहा हूँ मोती अंदर,
ढूंढ रहा हूँ तेरे दर से क्या है बेहतर। “
मधुलिका सक्सेना ‘मधुआलोक’ ने सभी का आभार प्रदर्शन किया।