डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’,
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव सिर पर है। अमेरिका में ५ नवंबर २०२४ को ६०वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए मत डाले जाएंगे। इसमें अमेरिकी नागरिक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनते हैं। दोनों का कार्यकाल ४ साल का होता है। इस बार राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से कमला हैरिस के बीच कड़ी भिड़ंत है। कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं।
अमेरिका विश्व की एक महाशक्ति है और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का प्रभाव न केवल अमेरिका के भीतर, बल्कि पूरे विश्व पर पड़ता है। इसलिए पूरे विश्व की निगाह अमेरिका में चुनाव पर है। इस बार डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के बीच कड़ी टक्कर है। अलग-अलग सर्वेक्षण अलग-अलग समय पर अलग-अलग रिपोर्ट दे रहे हैं। कभी ट्रम्प कुछ आगे निकल जाते हैं तो कभी कमला हैरिस, लेकिन जहाँ भारत के लोगों की निगाहें अमेरिका के चुनाव पर लगी हुई है वहीं अमेरिका में बसे भारतीय भी इस बात का आकलन कर रहे हैं कि दोनों दलों में से जो भी राष्ट्रपति बनता है, उसका उन पर क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है।
अगर भारत और अमेरिका में बसे भारतवंशी हिंदुओं के नजरिए से देखें तो जो बाइडेन एवं ट्रम्प पार्टी का रुख भारत के प्रति और हिंदुओं के प्रति लगभग नकारात्मक रहा है। कहना न होगा कि भारत के पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अमेरिकी संस्थाओं की पूरी कोशिश नरेन्द्र मोदी को हराने की रही। अमेरिका के धन कुबेर जॉर्ज सोरस ने भी पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे मोदी को सत्ता से हटाने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे, और उन्होंने वैसा ही किया भी। भारत सरकार द्वारा जब संविधान में संशोधन करके अनुच्छेद ३७० को जम्मू कश्मीर से हटाया गया तो भी बाइडेन सरकार और डेमोक्रेट इसके विरोध में थे। अगर यह कहा जाए कि डेमोक्रेटिक सरकार का रवैया काफी हद तक हिंदू विरोधी, मोदी विरोधी या भारत विरोधी रहा है तो यह गलत नहीं होगा। भारत की आर्थिक और सामरिक शक्ति बढ़ना भी वर्तमान अमेरिकी सरकार को रास नहीं आ रहा।
अमेरिका के विदेशी विभाग के दक्षिण एशिया के प्रभारी उपसचिव डोनाल्ड लू की तमाम गतिविधियाँ भी इसी दिशा में संकेत करती हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक से भारी ऋण दिलवाने में भी अमेरिका की बड़ी भूमिका रही। पाकिस्तान को आर्थिक मदद का मतलब है, भारत में आतंकवाद को बढ़ावा। पाक की आईएसआई की मदद से ही बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट हुआ। वहाँ बड़े पैमाने पर हिंसा करवाने और उससे भी बढ़कर हिंदुओं के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा करवाने में भी इनका हाथ रहा है।
कई बार लोग कमला हैरिस के कमला नाम से भ्रमित होते हुए यह सोचते हैं कि शायद वे हिंदुओं के पक्ष में या भारत के पक्ष में रहेंगी, बल्कि स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। इस संबंध में अमेरिका में हिंदू कोईलीएशन ऑफ़ आर.एन.सी. के अध्यक्ष शलभ कुमार कहते हैं कि कमला हैरिस और उनकी पार्टी न केवल मुस्लिम समर्थक हैं, बल्कि उससे कहीं आगे बढ़कर कट्टरवादी मुसलमानों के साथ खड़ी हैं। उनकी मंडली में रेडिकल इस्लामी तत्व मौजूद हैं। कमला हैरिस खुद को भारतीय मूल का या हिंदू नहीं, बल्कि ब्लैक अमेरिकन क्रिश्चियन मानती हैं।
कहना न होगा कि बांग्लादेश में जिस प्रकार हिंदुओं पर अत्याचार हुए और उस पर अमेरिका ने चुप्पी साधे रखी, यह बहुत कुछ कहता है। अब यह बात भी पूरी दुनिया को पता है कि बांग्लादेश में तख्ता पलट के पीछे अमेरिका के डोनाल्ड लू का हाथ था, जिन्होंने इसे पाकिस्तान की मदद से अंजाम दिया और बांग्लादेश को आजादी दिलवाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान और उनके बलिदान से जुड़ी तमाम चीजों को नष्ट करवाया। अमेरिका ने शेख हसीना, जिसके भारत से बहुत अच्छे संबंध थे, उसकी सरकार का तख्ता पलट करवा कर वहाँ अपने पालतू मोहम्मद यूनुस को गद्दी पर बैठाया। अगर अमेरिका चाहता तो फरमान जारी करके बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा को तत्काल रुकवा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
यही नहीं, बांग्लादेश के बाद अमेरिका का अगला निशाना भारत सरकार रही। डोनाल्ड ट्रम्प सरकार के विदेश सचिव और राजदूत अथवा उच्चायुक्त आदि ने चुनाव के तत्काल बाद भारत मोदी सरकार को समर्थन देने वाले दलों के नेताओं से प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से संपर्क करके मोदी सरकार को अस्थिर करने की भी कोशिश की। ऐसी भी खबरें आई कि राहुल गांधी अमेरिका में व्हाइट हाउस में जाकर वहाँ विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के अधिकारियों से भी मिले। उन्होंने डोनाल्ड लू से भी चर्चा की। ऐसा लगता है कि मामला कहीं न कहीं, बांग्लादेश की तरह मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का था। विपक्ष के नेताओं ने खुल्लम-खुल्ला ऐसी बातें कही भी थी, लेकिन न तो भारत बांग्लादेश है और न ही मोदी कोई कमजोर नेता।
कमला हैरिस पाकिस्तान समर्थक होने के साथ-साथ भारत विरोधी और हिंदू विरोधी भी हैं। कमला हैरिस का सत्ता में आना न तो भारत के हित में है और न ही अमेरिका में बसे हिंदुओं के हित में है।
जहां जो बाइडेन ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध करवा कर दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को संकट में डाला है, वहीं ट्रम्प का कहना है कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो भी इस युद्ध को जल्द समाप्त करवाएंगे। ट्रम्प भारत से अच्छे रिश्ते बनाने के पक्ष में हैं। इसी बीच डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव में अपना ट्रम्प कार्ड चलते हुए अमेरिका में और विश्व में जहां कहीं भी हिंदू हैं, उनके हितों की रक्षा की बात खुलकर कही है। डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद भारत से अच्छे रिश्ते बनाने की बात पर भी जोड़ दिया है।
इन तमाम कर्म से अमेरिका में बसे हुए हिंदू अपने हितों की रक्षा और अपनी मातृ भूमि भारत के हितों की रक्षा के लिए कहीं ना कहीं ट्रम्प के पक्ष में खड़े होते दिखाई दे रहे हैं।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में काँटे का मुकाबला है, तो हिंदू मतदाता एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यह कहना भी अनुचित न होगा कि भारत की शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ विश्व भर में बसी प्रवासी भारतीयों की शक्ति और सम्मान भी बढ़ा है और वह अब विश्व राजनीति में भी आगे बढ़कर अपने हितों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार है।