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अपने से प्यार करें, पर कर्तव्य भी निभाएं

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आजकल ‘आत्म प्रेम’ (सेल्फ लव) का शिगुफा उमड़ पड़ा है, इसकी तरंग में बहुतेरे नयी दुनिया बहने को आतुर भी दिख रही है, किन्तु यह क्या है ? आत्मप्रीति ही आत्म प्रेम… बन कर आया है…!
अपने-आपसे प्यार, सम्मान, अपनी देखभाल, सुरक्षा, अपनी अस्मिता की रक्षा, आत्मसंतुष्टि के लिए कार्य, अपने-आपको समय देना, किसी से कोई उम्मीद न रखना, भूलकर अपने को बुरा न सोचना, अपनी किसी से तुलना नहीं करना, अपने-आपको सराहना (अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना)… आदि। इसमें से बहुत-सी बात सभी पहले से अपने लिए करते ही हैं। बस… फिर इतनी-सी बात का इतना बड़ा सिद्धांत और बखेड़ा…? नहीं, इतनी सी तो नहीं है यह। इसमें जो कुछ गूढ़-गम्भीर बात है, वो है अपनी आवश्यकता को समझना, प्राथमिकता देना, निज आत्म को दुखा, सता कर संसार के लिए नहीं सोंचना, आपसे बच जाए आपके पास समय हो, तब औरों के लिए सोंचो-जियो…। हूँ, तब तो कुछ गड़बड़ है। आत्म प्रेम को नैतिक दोष, दंभ, अहंकार, घमंड, आत्म रति की तरह दोषपूर्ण माना गया है‌।
आत्म प्रेम (सेल्फ लव) और स्वार्थी (सेल्फिश) में बारीक-सा ही अंतर है। यहाँ त्याग, बलिदान, कर्तव्य, जैसी भावनाओं का कोई अर्थ न रह जाएगा। यदि ऐसे आत्म प्रेम की मानसिकता माँ अपना ले तो ? मानव जाति समाप्त।
हमारे भारतीय दर्शन और धर्म शास्त्र में ‘शिवोऽहम्’ और ‘अहम ब्रम्हास्मि जैसे तेज ओज से पूर्ण सूत्र, जिसका मूल सब-कुछ आत्मा है, किन्तु यह आत्मा संसार के हित और शुभ के लिए है, इस मानसिकता का दर्शन है।
चर्वाक मतावलंबियों के अनुसार-
(यावज्जीवेत्सुखं जीवेत ऋण कृत्वा घृतं पिवेत) “जब तक जियो, सुख से जियो, भले ही ऋण लेकर घी पियो” की व्यक्तिवादी मानसिकता व्यक्ति प्रथम और मात्र यह शरीर और संसार है। इसके अलावा न जन्म है न मोक्ष, न पुनर्जन्म, इस मत का यह आत्म प्रेम अनुकरण या प्रतिनिधित्व करता है। वामपंथी भी ढोल-नगाड़े लेकर यही बात कहते हैं।
नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं। आज का आत्म प्रेम मेरे मत से सीधा-सीधा हमें स्वार्थी बनाता है।आज के आधुनिक मोबाइलमय समाज में व्यक्ति वैसे भी अकेले अपने-आपमें उलझा हुआ है, ऊपर से आत्म प्रेम सिद्धांत। यह मानव को सामाजिकता, सहनशीलता से और दूर कर देगा। वो कूप मंडूप बनकर “मैं श्रेष्ठ हूँ, सुंदर हूँ, सत्य हूँ” में उलझा रहेगा एवं कलयुगी मनुष्य और भी अधोपतनगामी होगा।
अपने आत्मसम्मान (कई आत्मागुमान अहंकार को आत्म सम्मान समझते), आत्मरक्षा व आत्मसुख के लिए सभी प्रयत्न करते हैं। यह आत्म प्रेम है तो यह कोई नया दर्शन नहीं, सनातन मानवीय गुण है। इसमें नवीनता क्या है। अपने से प्यार करें, अपने पर अहंकार नहीं। आत्म-सम्मान और घमंड को अलग परिभाषित करें। अपने लिए, रुचि के लिए समय अवश्य निकालें, किन्तु परिवार-समाज के कर्तव्य भी निभाएं। अपने दोष-अवगुण पर अंकुश रखें, आत्म प्रेम के नाम पर इसे बढ़ावा न दें। अपनी सराहना अवश्य करें, किन्तु कोई दोष बताए तो आत्म-अवलोकन भी करें। आधुनिक रहें, किन्तु आधुनिकता के नाम पर वैचारिक विदूषक बन हँसी के पात्र न बनें।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।