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द्यूत का अंजाम

राधा गोयल
नई दिल्ली
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द्यूत खेलने का आमंत्रण खुद स्वीकार किया था,
इन्द्रप्रस्थ से हस्तिनापुर तक का सफर किया था
पता नहीं था द्यूत उसे किस नर्क में धकियाएगा,
द्यूत का वो अंजाम उसे कैसे दिन दिखलाएगा
इक सम्राट को वनवासी-सा जीवन जीना होगा,
पथ में लाखों शूल मिलेंगे, उन पर चलना होगा।

धर्मराज कहलाने वाले ने क्या धर्म निभाया ?
सारा राज्य दाँव पर रखकर, खुद को दाँव चढ़ाया
खुद को जुए में हार गए, भाइयों पर दाँव लगाया,
भाइयों को भी हार गए, पर तब भी होश न आया
भूल-चूक तो नहीं थी, यह सनकी की एक सनक थी,
हारी बाजी जीत जाऊँ, मन में यह सोच भरी थी।

क्या शकुनी की धूर्तपूर्ण चालों का नहीं पता था ?
दुर्योधन के साथ खेल था, शकुनी क्यों खेला था ?
धर्मराज कहलाने वाले को, क्या समझ नहीं थी ?
उसकी नासमझी की सबको, कैसी सजा मिली थी
धर्मराज ने पत्नी तक को, दाँव पे लगा दिया था,
खुद को हार चुके थे, तो किसने अधिकार दिया था ?

पत्नी की इज्जत भी लगी दाँव पर, भरी सभा में,
एक महारानी बेपर्दा होती रही सभा में
कुलगुरु, राजगुरू और भीष्म, बैठे थे उसी सभा में,
इस कुकृत्य को कोई रोक न पाया, भरी सभा में
धर्मराज की भूल-चूक का क्या परिणाम हुआ था ?
एक महारानी की इज्जत से खिलवाड़ हुआ था।

उसी भूल से धरती पर कितना विध्वंस हुआ था,
उसी भूल के कारण महाभारत का युद्ध हुआ था॥