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बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया की जटिल पर्यावरण समस्या

ललित गर्ग

दिल्ली
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बढ़ते तापमान, बदलते जलवायु एवं वैश्विक ताप की वजह से हिम खंड तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं, जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों-महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। इंसानों को प्रकृति, पृथ्वी एवं पर्यावरण के प्रति सचेत करने के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है। आज बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया की एक गंभीर एवं जटिल समस्या है, इसीलिए २०२५ में इस दिवस की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर केंद्रित है। दशकों से प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के हर कोने में फैल चुका है, यह हमारे पीने के पानी, खाने, शरीर और पर्यावरण में समा रहा है। इस प्लास्टिक कचरे की गंभीर समस्या से निपटने का एक वैश्विक संकल्प निश्चित ही एक समाधान की दिशा बनेगा। हर साल ४३० मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग २ तिहाई केवल १ बार उपयोग के लिए होता है और फेंक दिया जाता है।

सर्वविदित है कि इंसान व प्रकृति के बीच गहरा संबंध है। इंसान के लोभ, सुविधावाद एवं तथाकथित विकास की अवधारणा ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण न केवल नदियाँ, वन, रेगिस्तान, जलस्रोत सिकुड़ रहे हैं, बल्कि हिम खंड भी पिघल रहे हैं। तापमान का ५० डिग्री पार करना विनाश का संकेत है, जिनसे मानव जीवन भी असुरक्षित होता जा रहा है। इन वर्षों में बढ़ी हुई गर्मी एवं तापमान ने न केवल जीवन को जटिल बनाया, बल्कि अनेक लोगों की जान भी गई। पूरी दुनिया में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण, जलवायु अराजकता और जैव विविधता विनाश का एक जहरीला मिश्रण स्वस्थ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहा है और मानव जीवन पर तरह-तरह के खतरे पैदा कर रहा है।
प्रकृति को पस्त करने, वायु एवं जल प्रदूषण, कृषि फसलों पर घातक प्रभाव, मानव जीवन एवं जीव-जन्तुओं के लिए जानलेवा साबित होने के कारण समूची दुनिया में बढ़ते प्लास्टिक एवं माइक्रोप्लास्टिक के कण एक बड़ी चुनौती एवं संकट है। पिछले दिनों एक अध्ययन में मनुष्य के मस्तिष्क में प्लास्टिक के नैनो कणों के पहुंचने पर चिंता जताई गई थी। दावा था कि प्रतिदिन सैकड़ों माइक्रोप्लास्टिक कण साँसों के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे तमाम नये राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय शोध-सर्वेक्षण-अध्ययन चेतावनी दे रहे हैं कि घातक माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी गंभीर संकट है। इस तरह माइक्रोप्लास्टिक की दखल भोजन, हवा व पानी में होनान केवल प्रकृति, कृषि, पर्यावरण, वरन मानव अस्तित्व के लिए गंभीर खतरे की घंटी ही है, जिसे बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए और सरकारों को इस संकट से मुक्ति की दिशाएं उद्घाटित करने के लिए योजनाएं बनानी चाहिए।
प्लास्टिक की बहुलता एवं निर्भरता के कारण मौत हमारे सामने मंडरा रही है। हम चाहकर भी प्लास्टिक मुक्त जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे हैं, प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों को देखते हुए विभिन्न देशों की सरकारों ने ठान लिया है कि एकल उपयोगी प्लास्टिक के लिए कोई जगह नहीं होगी। भारत में प्रधानमंत्री पूर्व में ही देश को स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने की अपील करते हुए एक महाभियान का शुभारंभ कर चुके हैं। प्लास्टिक के कारण देश ही नहीं, दुनिया में विभिन्न तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसके सीधे खतरे २ तरह के हैं। एक तो प्लास्टिक में ऐसे बहुत से रसायन होते हैं, जो कैंसर का कारण माने जाते हैं। इसके अलावा शरीर में ऐसी चीज जा रही है, जिसे हजम करने के लिए हमारा शरीर बना ही नहीं है। इसलिए आम लोगों को ही इससे मुक्ति का अभियान छेड़ना होगा, जागृति लानी होगी।
शोधकर्ताओं ने केरल में १० प्रमुख ब्रांड के बोतलबंद पानी को अध्ययन का विषय बनाया है। निष्कर्ष है कि प्लास्टिक की बोतल के पानी का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के शरीर में प्रतिवर्ष १५३ हजार प्लास्टिक कण प्रवेश कर जाते हैं।
लगातार पाँव पसार रही माइक्रोप्लास्टिक की तबाही इंसानी गफलत को उजागर तो करती रही है, लेकिन समाधान का कोई रास्ता प्रस्तुत नहीं कर पाई। यह एक ऐसी समस्या बनकर उभर रही है, जिससे निपटना अब भी दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
संकट का एक पहलू यह भी है कि लोग सुविधा को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन प्लास्टिक के दूरगामी घातक प्रभावों को लेकर आँख मूंद लेते हैं।