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सच्चा मित्र

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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राघव अपनी कक्षा का एक होनहार विद्यार्थी था, सभी शिक्षक उसकी तारीफ़ करते न थकते। सभी कार्यों में निपुण था, लेकिन कहते हैं न कि, ईश्वर ने इस धरती पर किसी को भी सौ प्रतिशत अच्छा नहीं बनाया है। राघव में कमी थी तो इस बात की, कि वह अपाहिज था, बैसाखी के सहारे चलता था। राघव के दोनों पैर बचपन में किसी सड़क दुर्घटना में कट गए थे।काफ़ी इलाज करने पर वह बैसाखी के सहारे चलने लगा था। सभी विद्यार्थी राघव को पसंद करते थे, क्योंकि राघव सभी की पढ़ाई में सहायता करता था। सभी बहुत हँस- खेल कर रहते, कक्षा में हमेशा ख़ुशी का वातावरण रहता।सभी एकसाथ खाना खाते, खेलते आदि।
कक्षा में जय नाम का एक विद्यार्थी था, जो केवल अपने काम से काम रखता। वह अपनी ही दुनिया में रहता, उसका न कोई मित्र था, न कोई शत्रु। पढ़ाई में भी ठीक- ठाक था। सभी उसको ‘घमंडी जय’ के नाम से पुकारते, लेकिन उसे बुरा नहीं लगता, वह मुस्कुराकर रह जाता। प्रतिदिन की तरह आज भी स्कूल छूटने पर सभी विद्यार्थी अपना-अपना बैग लेकर बाहर निकल रहे थे। उन सभी के साथ राघव भी चल रहा था कि, अचानक राघव मूर्छित होकर गिर गया। उसके सभी मित्र डर गए और वहाँ से भाग गए। किसी ने रुकना ज़रूरी नहीं समझा। कुछ समय तक राघव ज़मीन पर गिरा रहा।
जय सबसे अंत में कक्षा से निकलता था। जैसे ही जय ने देखा कि, राघव ज़मीन पर गिरा पड़ा है, तुरंत उसके पास गया और उसको होश में लाने की कोशिश करने लगा। पानी के छींटे चेहरे पर पड़ते ही राघव को होश आया। कुछ समय के लिए वह समझ ही नहीं पाया कि, वह कहाँ है और उसे क्या हुआ था। जय को अपने पास देखकर वह चौंक गया और कहने लगा- “तुम यहाँ कैसे ?”
जय ने कहा-“धीरज रखो, सब बताता हूँ।” जय ने सारी घटना सविस्तार राघव को बता दी।
राघव ने कहा-“मेरे सारे दोस्त तो मेरे ही साथ थे, वह सब कहाँ थे ?”
जय ने कहा-“वो सब चले गए।”
राघव, जय से प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रहा था पर, जय उसके एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। कैसे देता!, जय सोच रहा था कि, यदि मैं राघव को बता देता कि, उसके वही दोस्त जो मतलब के लिए साथ थे, तुम्हें परेशानी में देखा तो डर कर तुम्हें अकेला छोड़ कर चले गए,तो ये जानकर राघव को बहुत बुरा लगेगा। इसलिए उसने उसे कुछ भी नहीं बताया।
दूसरे दिन राघव जल्दी ही स्कूल में पहुँच जाता है। तभी स्कूल का चपरासी उसे मिलकर उसका हाल-चाल पूछता है। राघव उससे काफ़ी समय तक बात करता रहा तो बात ही बात में राघव को उसके दोस्तों की सारी सच्चाई का पता चल जाता है।
कक्षा का समय हुआ, तो सभी अपनी-अपनी कक्षा में चले गए। राघव भी गया, पर आज राघव जय के पास जाकर बैठ जाता है। उस दिन राघव ने किसी से कोई बात नहीं की। राघव पूरा दिन यही सोचता रहा कि, जिन्हें मैं अपना मित्र मानता था, वह सबके-सब स्वार्थी निकले, और जिसे मैं अपना मित्र नहीं मानता था, घमंडी कहता था, उसने ही मेरी सहायता की। इससे ये पता चलता है कि, जो आपके साथ मीठी-मीठी बात करे, आपके साथ रहने का दिखावा करे, वह आपका सच्चा मित्र नहीं है। सच्चा मित्र वह है, जो आपकी मुसीबत में आपके काम आए। उस दिन से राघव ने अपने सारे स्वार्थी मित्रों का साथ छोड़ दिया।