हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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विश्व पिता दिवस (१५ जून) विशेष…
ज़िन्दगी के बहुत सारे पल होते हैं, जो कभी खुशी, कभी ग़म देते हैं। हर तरफ मजमा लगा हुआ है, इस जीवन के रंगमंच में हर एक किरदार अपनी अपनी भूमिका निभा रहा है। कोई परदे के पीछे, कोई परदे के आगे, सभी अपना- अपना अभिनय कर रहे हैं। कितनी बार हार भी गए हों, पर वह जीने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। सबक यही है रंग-ए-जीवन का, जिसे पूरी ईमानदारी के साथ निभाना ही पड़ता है। इस भटकते हुए जीवन के पर्दों के चलचित्र में ऐसा ही एक ठोस व मजबूत बंधन ‘पिता’ का ही होता है, जो संघर्षों के तूफान में हम बच्चों के लिए एक खुला आसमान बन कर हमारी नींव को मजबूत करते हैं, वह पिता ही होते हैं। जो हमें मंजिल पर चलना सिखाते हैं, नीचे से ऊपर कैसे चलना है, वह खुद हमें बताते हैं। गिरने वाले को वह उठाते नहीं, वह गिरने वाले को अपने दम पर उठना सिखाते हैं। हाथ पकड़ सहारा देते जरूर हैं, पर सीख के साथ जीवन के सफ़र में वह हमें चलना सिखाते हैं। बच्चों को वह उनकी शक्ति का अहसास कराते हैं, तभी तो बच्चा रोते-रोते फिर खड़ा होता है। पिता उनका हौसला बढ़ाते हैं, क्योंकि पिता ही होते हैं, जो बच्चों के बहुत ज्यादा सहयोगी बन मार्गदर्शन करते हैं। गम के इस अंधियारों में वह खुशी का दीप जलाते हैं। मंजिल को पाने में अगर बच्चा राह भटक जाए, और गलत संगत में पड़ जाए तो वह २-२ हाथ भी लगाते हैं। वह हमें सीधे रास्ते पर नहीं, बल्कि कठिनाईयों के सफ़र पर चलना सिखाते हैं, क्योंकि असली ज़िंदगी में छोटा रास्ता नहीं, वह मेहनत से जीना सिखाते हैं।
हम लोग जब बड़े हो जाते हैं, तो कभी-कभी उसको भूल जाते हैं।बच्चे बुजुर्ग हो चुके पिता को याद नहीं करते हैं, लेकिन पिता हर वक्त मोह के बंधन में बंधकर ‘मेरा बच्चा’, ‘मेरा बेटा’ करते रहते हैं। ये धागा स्नेह व वात्सल्य का जरूर है, पर आजकल टूट रहे रिश्तों के दौर में बाप-बेटों के यह बंधन वर्तमान समय में समझ से परे है। सामाजिक ताना-बाना आज-कल भटक गया है। इस मतलबी जमाने में बच्चों को नहीं दिखाई देता कि वह पिता ही है, जिनके हौसले पहाड़ों से भी बुलंद होते हैं। फिर क्यों आज-कल पिता और बच्चों का स्नेह कम हो रहा है, जबकि पिता एक ऐसा सशक्त किरदार है, जो जीवन में कभी रुका नहीं, आपने हौसले से डिगा नहीं और जिसने कभी हार नहीं मानी। पिता का किरदार सही में बहुत प्रभावी है।
आजकल आधुनिकता की इस रेलम-पेल में जीवन में रिश्तों में भी छोटापन आ गया है। कल तक जो बहुत ही प्रभावी व सटीक थे, वह वर्तमान में छोटे हो गए हैं। तभी तो हर ओर भटकता हुआ परिदृश्य दिखाई देता है। आग लगी हो बस्ती में तो मजा लेते हैं वह सभी लोग, पर मस्ती में आग बुझाने का काम कोई नहीं करता। यही अंतर प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हो गया है, जिसे भर पाना बड़ा ही मुश्किल लगता है। आज सभी अपने-अपने में लगे हुए हैं। किसी के दु:ख तकलीफ़ व ख़ुशी से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। आज पिता दिवस पर वर्तमान पीढ़ी को अपने पिता जी के लिए उनका सहयोगी बन कर साथ देने की आवश्यकता है, क्योंकि परिवार के बंधनों में सबसे मजबूत कड़ी पिता की ही होती है। उनकी छत्रछाया में ज़िन्दगी का सफ़र खुशहाली से कट ही जाता है। इसलिए जरूरत है कि सभी अपने-अपने पिता के प्रति आदर-भाव, मान-सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करें।