कुल पृष्ठ दर्शन : 10

You are currently viewing वह पिकनिक…!

वह पिकनिक…!

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**********************************

बात आज से लगभग ३० वर्ष पहले की है, जब मैं शाला में पढ़ाया करती थी।

प्रति वर्ष सर्दियों में बड़े दिन की छुट्टियों से पहले हम लोग बच्चों को पिकनिक पर लेकर जाते थे। कक्षा के अनुसार दिन पहले से तय कर लिया जाता था। मैं सीनियर कक्षा को पढ़ाती थी, इसलिए सीनियर कक्षा के साथ जाती थी।
ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा को लेकर जाना अपने-आपमें एक बड़ा काम हुआ करता था।
सब समय पर उपस्थित थे। बारहवीं कक्षा की छात्राओं ने कुछ शिक्षक से बात करके उन्हें राज़ी कर लिया था कि एक बस में केवल छात्राएँ ही जाएँगी।
२ बस जाने वाली थी, एक में सारे लड़के तथा सीनियर स्टॉफ तथा दूसरे में लड़कियाँ और युवा शिक्षक बैठ गईं। बस वाले को बहुत समझाया गया था कि दोनों बस आगे-पीछे चलेंगी। लगभग २५ किलोमीटर का सफ़र तय करना था। मैं बात जबलपुर की कर रही हूँ, जहाँ शहर से लगे हुए कई बहुत सुंदर पिकनिक स्पॉट हैं। हमलोग बर्गी डैम जा रहे थे। थोड़ी दूर तक तो दोनों बसें आगे-पीछे चल रही थीं, पर एक जगह चौरस्ते पर कई पीली बसें आ गईं, स्कूल जाने का समय था। छात्राओं वाली बस का ड्राइवर किसी दूसरी पीली बस के पीछे चल पड़ा। थोड़ी देर तक जब बस नहीं दिखी तो हम सबने सोचा कि किसी दूसरे रास्ते से आ रहे होंगे, पर वहाँ तो कोई बस नहीं पहुँची। डैम के पास ही एक रेस्ट हाउस था, जहाँ बच्चों के खाने का प्रबंध किया गया था। हम सब वहाँ पहुँचे और साथ के जो पुरुष शिक्षक भी थे, वे आसपास की बस्ती में अपनी समस्या बता कर स्कूटर माँग कर रास्तों का पता लगाने चले गए। हम सब तो पूरी तरह सदमें में थे। साथ में आए बच्चे भूखे थे, हमलोगों ने उनके खाने का प्रबंध करवाया। हम सबके पहुँचने के लगभग २ घण्टे बाद एक पुरुष शिक्षक और उनके पीछे बस चली आ रही थी। बस देख कर हम सबकी स्थिति सामान्य हुई। सबने खाना खाया और वापस चल पड़े। वह पिकनिक जीवन भर नहीं भूलेगी।