डॉ. रामवृक्ष सिंह
लखनऊ (उप्र)
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चंद्रयान श्रीहरिकोटा से चला चांद की ओर,
अनुगुंजित थीं सभी दिशाएँ, मचा ग़ज़ब का शोर।
रॉकेट का वह तुमुल नाद वे भारत के जयकारे,
पुलकित थे आबाल वृद्ध नर- नारी हर्ष के मारे।
कुछ क्षण में निश्चित कक्षा में जा पहुँचा जब यान,
तब ‘इसरो’ दल की जानों में आ पाई कुछ जान।
किन्तु अभी लाखों मीलों तक इसे है चलते जाना,
अंधकार नीरव नभ का पथ अनचिन्हा अनजाना।
बिना थके विश्राम बिना बस इसे अनवरत चलना,
निज पथ का संधान स्वयं कर निज दीपक बन जलना।
चाँद की कक्षा में जाकर कुछ दिवस परिक्रम करना,
फिर प्रेषित संकेत समझ धीरे से चाँद उतरना।
कितना मुश्किल मानव का चंदा मामा घर जाना,
चाँद सभी का सगा, मगर मुश्किल है उसको पाना॥
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)