डॉ.शैलेश शुक्ला
बेल्लारी (कर्नाटक)
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‘भ्रष्टाचार’ एक ऐसा जादू है, जो हर सरकारी दफ्तर में चुपचाप काम करता है। यह बाहर से बुरा दिखता है, लेकिन अंदर से बहुत काम का होता है। जहाँ नियम-कायदे रेंगते हैं, वहाँ भ्रष्टाचार दौड़ता है। यह अफसरों को थकान से बचाता है, बाबुओं को मुस्कुराने की वजह देता है और आम आदमी को जल्दी काम होने की उम्मीद भी।
अब सोचिए, एक आदमी अगर नियम से फॉर्म भरकर सरकारी दफ्तर जाए तो महीनों लग सकते हैं, लेकिन अगर वह थोड़ा ‘प्रोत्साहन शुल्क’ यानी रिश्वत देदे, तो वही काम १ दिन में हो जाता है। यह भ्रष्टाचार का असली कमाल है। यह न तो आंदोलन मांगता है, न अदालत का चक्कर-बस थोड़ी सी समझदारी और जेब में थोड़े रुपए। भ्रष्टाचार ने अफसरों के जीवन को आसान बना दिया है। अब उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, बस मीठे लहजे में काम करवाना होता है। उन्हें ऊपर की कमाई भी हो जाती है, जिससे वे अपनी गाड़ी, बंगला और विदेश यात्रा का सपना पूरा कर लेते हैं। और मज़ेदार बात ये कि आयकर विभाग को भी कानों-कान खबर नहीं होती!
यह रिश्वत देना और लेना अब कोई अपराध नहीं लगता, बल्कि यह एक नया तरीका बन गया है;जिससे काम जल्दी और आराम से हो जाता है। इससे अफसर खुश, कर्मचारी संतुष्ट और आम आदमी चैन में रहता है। तो अब साफ है, कि जब हर किसी को फायदा हो रहा हो, काम समय पर हो रहा हो, और सब तरफ मुस्कान हो-तो यह कहना गलत नहीं होगा कि “भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।”
◾अधिकारियों को लाभ-
सरकारी अधिकारी का जीवन
जितना दिखने में सरल लगता है,
वास्तव में वह उतना ही जटिल औरसंघर्षपूर्ण होता है। सुबह से शाम तक फाइलें पढ़ना, बैठकों में झक मारना, ऊपर से मंत्री जी के मूड के अनुसार फैसले बदलना-इन सबसे अगर कोई मानसिक संतुलन बचा हैतो केवल एक ही कारण है, और
वह है भ्रष्टाचार। यह ‘अनौपचारिक प्रोत्साहन नीति’ अधिकारियों को प्रेरित, ऊर्जावान और ‘रचनात्मक’ बनाए रखती है।
अब जरा सोचिए, एक
जिलाधिकारी, जो महीनों तबादले के डर में जीता है, अगर उसे कोई
ठेकेदार ‘प्रसन्नता शुल्क’ देदे, तो
वह स्वयं भी मुस्कराएगा और कामको भी गति देगा। विभागीय निरीक्षण के दौरान अगर कोई व्यापारी ‘सहयोग राशि’ प्रदानकरे, तो रिपोर्ट भी रेशमी हो जाती हैऔर अधिकारी की रातें भी चैन से गुजरती हैं। अधिकारियों को मिलने वाली ये
‘ऊपरी कमाई’ न केवल उनके
भौतिक जीवन को समृद्ध करती है,बल्कि उनके सामाजिक रुतबे को भी चमकदार बनाती है।अब अधिकारी भी अपने बच्चों को विदेश भेज सकते हैं, आलीशान
बंगला बनवा सकते हैं, और एक
सम्माननीय जीवन जी सकते हैं,
जिसे केवल ‘सरकारी वेतन’ पर
जीना लगभग असंभव है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि ये ‘प्रोत्साहन राशि’ इतनी गोपनीय होती है कि आयकर विभाग भी संदेहनहीं कर पाता। इससे ना सिर्फ अधिकारी सुखी रहते हैं, बल्कि विभागीय टकराव और तनाव भी घटते हैं। जब हर फाइल के साथ थोड़ा ‘प्रेम पत्र’ हो, तो अधिकारी स्वयं पहल करता है, वरना फाइलें कागज़ों की कब्रगाह में तब्दील हो जाती हैं।अतः, अधिकारी वर्ग के इस मानसिक, आर्थिक और सामाजिककल्याण में जो अनदेखा सहयोगी है, उसका नाम है-भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾धन देकर नौकरी पर लगे कर्मचारियों को लाभ-
नौकरी की दुनिया में योग्यता अब केवल एक औपचारिक दस्तावेज़ है, असली जादू तो वो ‘नोटों की भाषा’ है, जो हर साक्षात्कारकर्ता समझता है। जब कोई अभ्यर्थी धन देकर नौकरी प्राप्त करता है, तो यह महज सौदा नहीं, एक स्थायी निवेश है।भले ही वह परीक्षा में असफल हो गया हो, लेकिन रिश्वत के बल पर जब उसे सरकारीनौकरी मिलती है, तो वह अपने पूरे वंश की आर्थिक स्थिति बदल देता है।
धन देकर नौकरी पाना कोई नैतिकअपराध नहीं, बल्कि आज के युग मे‘डिप्लोमैटिक एंट्री’ है, जिसमें समय और प्रयास दोनों की बचत होती है। यह उन लाखों युवाओं के लिए
उम्मीद की किरण है, जो मेहनत
करके भी हर बार फल लटकते देखते हैं। अब अगर वह थोड़ा धन देकर सरकारी दफ्तर में बाबू बन जाए, तो न केवल उसे स्थायी नौकरी मिलती है,बल्कि वह स्वयं भी भ्रष्टाचार की सेवा में लग जाता है-यानी इस व्यवस्था का सक्रिय भागीदार बन जाता है। इससे दोहरा लाभ होता है- पहला, उसे तनख्वाह मिलती है, और दूसरा, वह भी दूसरों से ‘सहयोग राशि’ लेकर अपना निवेश वसूल करता है। यह चक्र इतना सुंदर और संतुलित है, कि अर्थशास्त्री भी इसे ‘स्थायी पूंजी मॉडल’ कह सकते हैं।और हाँ, यह कर्मचारी अपने दोस्तोंऔर रिश्तेदारों को भी यही मार्ग दिखाता है, जिससे एक पूरी पीढ़ी का’स्मार्ट एंप्लॉयमेंट चैनल’ बनता है।इसमें ना स्पर्धा की टेंशन, ना रैंक की चक्कर, और ना ही कटऑफ की चिंता-बस सही दर पर सौदा, और उज्जवल भविष्य की गारंटी। अतः, जब नौकरी पाने वाला और व्यवस्था दोनों प्रसन्न हों, तो यही कहने का समय है-भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾काम आसानी से होने का लाभ- जब बात किसी जरूरी सरकारी काम की हो, और वो भी समय पर, तो आम आदमी जानता है कि ‘फॉर्म भरने’ और ‘प्रक्रिया पूर्ण करने’ सेज़्यादा ज़रूरी है ‘संकेत समझना और सहयोग करना।’ नियमों और प्रक्रियाओं की चौखट पर अटक कर जब आम-जन थक-हार जाते हैं, तब भ्रष्टाचार उन्हें वह मार्ग दिखाता है, जहाँ ‘सीधा संवाद,स्पष्ट समाधान’ की नीति चलती है।अगर कोई व्यक्ति जन्म प्रमाण-पत्र बनवाने जाए तथा बिना रिश्वत दिए ३ महीने इंतजार करे, पर वही प्रमाण-पत्र अगर ५०० ₹ दे देने से अगले दिन बन जाए, तो क्या यह त्वरित सेवा व्यवस्था का चमत्कार नहीं ?
आज की भाग-दौड़ भरी दुनिया में किसी के पास समय नहीं है-यह समय बचाने की तकनीक है, जिसे हम भ्रष्टाचार के नाम से जानते हैं।यह वह व्यवस्था है जो ‘फाइल में नोटिंग डालो’ की जगह ‘फाइल कोफुर्ती से दौड़ाओ’ का सिद्धांत अपनाती है। इससे अफसर का भी समय बचता है, बाबू का भी और सबसे ज़्यादानागरिक का। ये प्रशासन की वो
गुप्त एक्सप्रेस सेवा है, जो चुनिंदा जानकार नागरिकों को ही प्राप्त होती है। यदि आप चाहें कि आपके घर का बिजली मीटर तुरंत लगे, राशन कार्ड नए पते पर तत्काल स्थानांतरित हो,या फिर नगर निगमआपके गड्ढे वाले रास्ते को रातों-रात समतल कर दे-तो भ्राताओं और भगिनियों! बस एक छोटा-सा ‘प्रेरणा भत्ता’ दीजिए, और चमत्कार देखिए। नियमों से बंधे रहकर जो जीवन सूखता है, उसे रिश्वत की कुछ बूँदें सींच देती हैं। अतः, जब काम आसानी से, बिना झंझट, शीघ्र और सटीक रूप से होने लगे, तो यही प्रमाण है, कि भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾काम करने-करवाने वाले का लाभ-
भ्रष्टाचार एकमात्र ऐसी विधा है, जोदोनों पक्षों को समभाव से लाभ देती है-देने वाले को भी और लेने वाले को भी।यह व्यवस्था परस्पर लाभ की ‘विन-विन’ स्थिति है, जहाँ कोई भी पक्ष पराजित नहीं होता। काम करवाने वाला अपने लक्ष्य तक पहुंचता है, और काम करने वाला अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य की नींव डालता है।इसमें कोई शोषण नहीं, कोई हिंसा नहीं-यह पूर्णतः सहमति पर आधारित वह आत्मिक लेन-देन है, जिसमें ‘वेतन से अधिक मूल्य’ और ‘प्रक्रिया से अधिक प्रगति’ है।
अब सोचिए, एक ठेकेदार सड़क निर्माण का काम करना चाहता है।यदि वह बिना रिश्वत दिए टेंडर ले तोमहीनों फाइल विभागों में घूमेगी,पर अगर टेबल के नीचे से थोड़ी चाय-पानी पहुंचा दे तो उसी फाइल को ‘प्राथमिकता’ मिल जाती है। अधिकारी को ‘प्रेरणा’, कर्मचारी को ‘संतोष’, और ठेकेदार को ‘ठेका’-सभी को मिलता है मनचाहा लाभ। इससे अधिक समावेशी और सामूहिक कल्याणकारी नीति और क्या होगी ? यहाँ कोई आरक्षण नहीं, कोई जातिगत भेद नहीं, बस योग्यता की एकमात्र शर्त है-‘समझदारी और उदारता।’ यह नव-भारत का नया धर्म है, जिसे सभी धर्मों, वर्गों और जातियों के लोग एकमत होकर अपनाते हैं।हर सफल कार्य के पीछे एक अदृश्य रिश्वत होती है, जो व्यवस्था के पुर्ज़ों को चिकना और गतिशील बनाए रखती है। इसलिए, जब दोनों पक्ष खुश, संतुष्ट और लाभान्वित हों तो भला इससे बेहतर व्यवहार और क्या हो सकता है ? भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾अर्थव्यवस्था को लाभ-
देश की अर्थव्यवस्था में जिस चीज़की सबसे ज़्यादा अनदेखी होती है, वह है ‘रिश्वत का रेवेन्यू।’ जी हाँ, भले ही यह गुप्त रूप से संचालित होता हो, पर इसका प्रभाव अत्यंत व्यापक और बहुआयामी होता है।भ्रष्टाचार से चलने वाली समानांतर अर्थव्यवस्था ने अनेक बेरोज़गारों को रोजगार, अफसरों को विदेश यात्रा और नेताओं को पूंजीगत सशक्तिकरण का अवसर दिया है।
यह वो वित्तीय धारा है, जो कर व्यवस्था की जटिलताओं से परे रहकर आर्थिक संतुलन बनाए रखती
है।
अब आप सोचिए, अगर किसी सरकारी विभाग में रिश्वत देना और लेना बंद हो जाए, तो कितने कर्मचारियों की अतिरिक्त आमदनी रुक जाएगी, कितने चायवाले, धोबी, कूरियर और वाहन चालक जो इन अधिकारियों के सहारे जी रहे थे-सड़क पर आ जाएंगे।भ्रष्टाचार एक तरह का ‘वित्तीय मल्टीप्लायर है, जैसे ही एक रिश्वत दी जाती है, वह सीधे ५ लोगों की जेब तक पहुंचती है। बाजारों में नया पैसा आता है, उपभोग बढ़ता है, रियल एस्टेट फूला-फूला रहता है, सोने-चाँदी की बिक्री में इज़ाफा होता है और विदेशी ब्रांड्सके शो-रूम में भीड़ बनी रहती है।क्या ये सब महज़ संयोग हैं ? नहीं, ये भ्रष्टाचार की प्रत्यक्ष उपलब्धियाँ हैं, जो हमारे देश की आर्थिक ‘स्पाइन’ को मज़बूत करती हैं। यदि विश्व बैंक और आईएमएफ को ये मॉडल दिखाया जाए, तो वे भी भारत की नीति को ‘अनौपचारिक आर्थिक नवाचार’ कहकर सम्मानित कर देंगे। अतः, जब अर्थव्यवस्था में रफ्तार, तरलता औरत्रिपक्षीय प्रसन्नता हो, तो स्पष्ट है किभ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾धन खर्च करके जीतने वाले नेताओं को लाभ-
लोकतंत्र में चुनाव लड़ना अब साधु-संतों का काम नहीं रहा;यह एक पेशा है, और चुनाव प्रचार उसकी मार्केटिंग। जब एक प्रत्याशी करोड़ों खर्च कर चुनाव जीतता है, तो वह अपने पैसे को ‘समाज सेवा हेतु निवेश’ के रूप में देखता है। और यह निवेश तब तक घाटे का सौदा नहीं होता, जब तक भ्रष्टाचारनाम की युक्ति जीवित है।
चुनाव में खर्च किए गए पैसे को वसूलने और कई गुना करने का सबसे सहज तरीका है-कमीशन, घोटाला, ठेकेदारी, साझेदारी और नीति निर्माण में ‘प्रेरणा शुल्क’। जिस नेता ने चुनाव प्रचार में १० करोड़ खर्च किए हों, अगर उसे मंत्री पद मिल जाए, तो वह न केवल अपना निवेश लौटाता है, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए भी बचत करता है। ऐसे में उसे भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि ‘सत्ता-संचालन नीति’ कहा जाना चाहिए।
और सोचिए, यह धन कहीं बाहर नहीं जाता-यही पैसा लौटकर शहर की सड़कों, पुलों और योजनाओं केठेकेदारों, अधिकारियों और कर्मचारियों में बांटा जाता है।यह एक आर्थिक चक्र है, जिसमें नेता ‘फाइनेंसर’ होता है और प्रशासन उसका ‘रेटर्न-ऑन-इन्वेस्टमेंट।’ जनता को भी इसमें लाभ मिलता है -नेता क्षेत्र में सड़क बनवाता है, त्योहारों में मिठाई बंटवाता है, और श्मशान घाट तक पक्का करवा देता है, बशर्ते रिश्वतखोरी की नदियाँ बहती रहें।
तो यह साफ है कि धन से सत्ता, और सत्ता से फिर धन का यह चक्र भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ बन चुका है।जब जनसेवक चुनाव जीतकर वास्तव में अपने ऊपर किए गए खर्च को समझदारी से वसूलता है, तो यही सिद्ध होता है कि-भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।
◾लंबी कतार न होने का लाभ-
सरकारी दफ्तरों में लंबी कतारें, सुस्त कर्मचारी, और थकी जनता-यह दृश्य बहुत आम है, लेकिन इन सभी समस्याओं का समाधान भ्रष्टाचार के पास है, और वह है ‘सीधी एंट्री’।यदि आप समझदार हैं और आपको मालूम है कि किस जेब को गर्म करना है, तो ना केवल कतार से बच सकते हैं, बल्कि काम ‘काउंटर से पहले’ भी हो सकता है। पासपोर्ट बनवाना हो, ड्राइविंग लाइसेंस लेना हो, पेंशन पास करानी हो -हर जगह लंबी कतार होती है, पर वीआईपी व्यवहार उन्हीं को मिलता है, जो ‘कृपादृष्टि शुल्क’ देना जानतेहैं। इससे न केवल समय बचता है, बल्कि मन की शांति भी बनी रहती है। यह कतार से मुक्ति का अधिकार, आम नागरिक को समानता का नहीं, समझदारी का इनाम है।और फिर यह सेवा सभी के लिए खुली है-कोई जातिगत आरक्षण नहीं, कोई उम्र सीमा नहीं-बस ‘राशि उचित’ और ‘व्यक्ति योग्य’ होना चाहिए।
कुछ लोग इसे नैतिक पतन कह सकते हैं, पर वास्तव में यह समय की बचत का मूल्य है। जब हजारों लोग परेशान हो रहे होंऔर एक साधारण भुगतान से आपउस भीड़ से बच निकलें, तो क्या यह जीवन कौशल नहीं ? जो नागरिक यह नहीं जानता कि “कब, कहाँ और कितना देना है”, वह आधुनिक व्यवस्था का मूर्ख शिष्य है। इसलिए जब आम आदमी को वीआईपी अनुभव मिले, समय बचे, चाय की दुकानों में कतार से छुटकारा मिले, तो इसका कारण केवल एक है-भ्रष्टाचार से सभी को होता लाभ।