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बरसे श्यामल घन

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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बागों में पिक के बोल,
कोयल भी कण्ठ खोल
अपने मधुर गीत,
सबको सुनाती है।

बरसे श्यामल घन,
घबराये मेरा मन
साजन भी परदेश,
रैन नहीं सुहाती है।

कैसे समझायें हम,
कैसे बतलाएँ हम
सखियाँ भी बार-बार,
मुझको बुलाती हैं।

कैसे मैं करूँ श्रृंगार,
जीवन ही लगे भार
प्रियतम के आने की,
खबर लुभाती है॥