दिल्ली
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा केवल राजनयिक औपचारिकता नहीं, बल्कि इक्कीसवीं सदी की नई एशियाई शक्ति संरचना का संकेत है। यह यात्रा भारत और जापान के बीच ‘दोस्ती के नए दौर’ का आगाज है, जो वैश्विक व्यापार, सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन पर गहरा असर डालेगी। प्रधानमंत्री ने भारत-जापान ज्वाइंट इकोनॉमिक फोरम को संबोधित करते हुए जापान की तकनीक और भारत की प्रतिभा से दोनों देशों के साथ दुनिया की तस्वीर बदलने की बात कही। भारत की विकास यात्रा में जापान की अहम भूमिका रही है। मेट्रो से निर्माण, सेमीकंडक्टर से स्टार्ट-अप तक अनेक विकास, तकनीकी एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हमारी साझेदारी आपसी विश्वास का प्रतीक है। भारत विश्व की सबसे तेज विकसित होती अर्थ-व्यवस्था है। बहुत जल्द विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, जिसमें दोनों देशों की निकटता से नए आयाम उद्घाटित होंगे।
आज वैश्विक परिदृश्य में सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका और चीन, अमेरिका एवं भारत के बीच चल रही ‘कर युद्ध’ है। अमेरिका द्वारा लगाए भारी शुल्क ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दिशा बदल दी है। इस टकराव का असर केवल अमेरिका-चीन पर नहीं पड़ा, बल्कि भारत जैसे उभरते बाजारों और विकसित होते देशों पर भी गहरा संकट आया है। भारत के निर्यात को नुकसान पहुँचा है, कच्चे माल की कीमतों में अस्थिरता आई है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। ऐसे समय में भारत-जापान का एक-दूसरे के और नजदीक आना एक ‘रणनीतिक अवसर’ है। जापान तकनीक, पूँजी और नवाचार में अग्रणी है, वहीं भारत के पास विशाल मानव संसाधन, बड़ा बाजार और विकास की अपार संभावनाएं हैं। यह यात्रा इन दोनों शक्तियों को एक साझा मंच पर लाने का प्रयास है, ताकि अमेरिका के ‘कर युद्ध’ से बने शून्य की भरपाई की जा सके। इन्हीं जटिल स्थितियों के बीच भारत अपने उत्पादों के लिए नए बाजार की तलाश में है। यह जापान यात्रा केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। चीन के विस्तारवाद, अमेरिका की अनिश्चित नीतियों और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे हालात में भारत और जापान का साथ आना ‘संतुलनकारी शक्ति’ की तरह काम करेगा। दोनों देशों ने ‘इंडो-पैसिफिक रणनीति’ को मजबूती देने पर जोर दिया है, जिसका उद्देश्य एशिया में शांति, स्थिरता और मुक्त व्यापार सुनिश्चित करना है।
जापान, भारत का पुराना मित्र राष्ट्र है। भारत और जापान के रिश्तों की नींव कोई आज की नहीं है। आठवीं शताब्दी में बोधिसेना नामक भारतीय साधु ने नारा के तोदाईजी मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा की थी। यह पहला ऐतिहासिक संपर्क माना जाता है। आगे चलकर स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जस्टिस राधा बिनोद पाल जैसी हस्तियों ने दोनों देशों के रिश्तों को गहरा किया। आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और आजाद हिन्द फौज को जापान से मिला समर्थन एवं सहयोग इस बात का प्रमाण है कि दोनों देशों के रिश्ते सन् १९४७ से पहले से ही प्रगाढ़ एवं मित्रतापूर्ण थे।
आज भारत-जापान साझेदारी में रक्षा, विज्ञान, शिक्षा, संस्कृति और रणनीतिक सुरक्षा जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं। मित्रता एवं सहयोग की यह विरासत आज भी जारी है, यही कारण है कि यह यात्रा निश्चित तौर पर दूरगामी उद्देश्यों से जुड़ी है। दोनों देशों की साझेदारी से नयी दिशाएं उद्घाटित होंगी, हालांकि इस साझेदारी की राह आसान नहीं है। भारत को अपनी नौकरशाही जटिलताओं, बुनियादी ढाँचे की कमी और नीतिगत अस्थिरताओं को दूर करना होगा, ताकि जापानी निवेशकों का विश्वास बढ़ सके, तो जापान को भी यह समझना होगा कि भारत का बाजार केवल उपभोक्ताओं का नहीं, बल्कि साझेदारी की संभावनाओं का बाजार है। यदि यह रिश्ता आगे बढ़ता है, तो भारत केवल जापान का साझेदार ही नहीं रहेगा, बल्कि पूरे एशिया में ‘नई शक्ति धुरी’ का केंद्र बन सकता है। भारत-जापान की निकटता एवं आपसी समझौते अनेक दृष्टियोें से महत्वपूर्ण है, व्यापारिक दृष्टिकोण से भरपूर संभावनाएं हैं। वैसे भी जापान, चीन पर निर्भरता घटाना चाहता है। भारत इसके लिए सबसे स्वाभाविक विकल्प है। यदि जापानी उद्योग भारत में बड़े पैमाने पर निवेश करते हैं तो ‘मेक इन इंडिया’ को नई ऊर्जा मिलेगी।
अमेरिका और यूरोप के बाजार अस्थिर हैं। भारत-जापान मिलकर ‘एशिया-प्रशांत’ को स्थिर और सशक्त व्यापारिक क्षेत्र बना सकते हैं। दोनों देश बुनियादी ढाँचा निर्माण करते हुए एक दूसरे के विकास में सहायक होंगे। जापान का विशेष अनुभव और वित्तीय सहयोग भारत की मेट्रो रेल, उच्च गति बुलेट ट्रेन और बंदरगाह परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को गति देगा, बल्कि दोनों देशों को दीर्घकालिक साझेदार बनाएगा। निश्चित दौर पर जापान यात्रा केवल दोस्ती का नया अध्याय नहीं है, बल्कि अमेरिका-चीन टकराव से उपजे शून्य को भरने की कोशिश है।
भारत-जापान की दोस्ती का नया दौर बदलती वैश्विक परिस्थितियों और शक्ति-संतुलन का निर्णायक पहलू है। यह न तो किसी आक्रामक गठबंधन का रूप है, न ही केवल आर्थिक लाभ का गणित, बल्कि यह लोकतंत्र, शांति, प्रौद्योगिकी और मानवता पर आधारित नए वैश्विक युग की नींव है। निश्चित तौर पर कहा जा सकता है, कि यह यात्रा न सिर्फ भारत-जापान संबंधों को नई ऊँचाई देने का मौका होगी, बल्कि एशियाई कूटनीति में भारत की भूमिका को और मज़बूत करेगी। भारत-जापान का नया दौर विश्व को संदेश देता है कि शक्ति का संतुलन केवल सैन्य बल से नहीं, बल्कि सहयोग, विकास और नैतिक मूल्यों से बनेगा। एशिया का भविष्य भारत और जापान की साझेदारी से निर्धारित होगा, जो दुनिया को स्थिरता और संतुलन की दिशा देगा।