कुल पृष्ठ दर्शन : 172

हिमाचल की पुकार

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
*****************************************

आज हिमाचल रो रहा है, चहुं ओर देख कर चीख पुकार
टूटे पर्वत, सड़कें टूटीं, बहा गई नदियाँ कई लोगों के घर-बार।

बेघर हुए, कई अनाथ हुए, कईयों का बह गया सब परिवार,
बेजुबां पशु भी बह गए, पेड़-पौधे तो बह गए लाख-हजार।

वह बह गया! वह ढह गया! रुको! भागो! बचो!-है यही गुंजार,
बस काया का कपड़ा ही शेष रहा, लुट गया बाकी का संसार।

लोगों की मदद लोग ही कर रहे, थक गई है हिमाचल सरकार,
पक्ष-विपक्ष में घमासान मचा है, कौन करेगा इसका उपचार ?

सत्ता हो गई निरुत्तर-सी, कुदरत भी न कुछ सुनने को तैयार,
मानव मस्ती में चूर है, सुधारा किसने यहाँ अपना व्यवहार ?

पेड़ काटना, अवैध खनन और गंदगी फैलाना देवों के दरबार,
मान बैठा है सुविधा-जीवी, मानव अपना मौलिक अधिकार।

देव-स्थल हो गए पिकनिक के अड्डे, होने लगे वहाँ व्यभिचार,
छोटों को रही न कद्र बड़ों की, तनिक भी रहा न शिष्टाचार।

तर्कवादी मानव न मानेगा, कुदरत तो चलाएगी अपने हथियार,
आत्म-शुद्धि कुदरत को भी करनी है, तू करता रह हाहा-कार।

पढ़ाई-लिखाई से बुद्धि सठियाई, स्वार्थ बढ़ा और भ्रष्टाचार,
कायदे-कानून सब कागज में रह गए, बाकी मची है मारामार।

संभल ले मूर्ख मानुष अभी भी! बहुत बुरी कुदरत की मार।
आ गई अपनी पर तो छोड़ेगी न फिर, तुझे न तेरा कारोबार॥