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महान राष्ट्रभक्त संत

आचार्य संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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पं. दीनदयाल उपाध्याय जयंती विशेष (२५ सितंबर)….

सत्य सनातन धर्म विचारक,
हिंदू हित चिंतक प्रचारक
एकात्म मानववाद दर्शन संचारक,
राजनीति साहित्य उत्प्रेरक।

‘वसुधैव कुटुंबकम’ के अद्भुत प्रेरक,
कलमकार, प्रबुद्ध चिंतक व लेखक
दरिद्रनारायण के उत्कृष्ट उपासक,
राष्ट्रभक्त, पत्रकार, साहित्य के सेवक।

सनातन विचारों में दूरदृष्टि,
योग साधना क्रिया समष्टि
मानववाद एकात्म की दृष्टि,
सृष्टि, जीवन मूल्य की पुष्टि।

लेखन उम्दा थे अतिबोध,
सदैव कराते सबको बोध
मानव जीवन सृष्टि पर शोध,
दूर हटाते सब अवरोध।

प्राणवायु-सी व्यथा लेखनी,
रचते देश, दुनिया की कथनी
जैसी करनी सम वैसी भरनी,
शब्द, छंद में जीवन तरिणी।

सुंदर आँखें क्या अद्भुत तेज ?
शिखर पुरुष लिखे अंतिम पेज,
‘हत्यारिन राजनीति’ पुस्तक दस्तावेज,
डर भय से न रहा कभी गुरेज।

राजनीति में मिट गए टूटा वजूद,
मृत्यु में आज भी संदिग्ध मौजूद
मुगल सराय जं.( पं दीनदयाल उपाध्याय जं.) मे गिरे हिंदू दूत,
मौत की खबर, हुआ देश अश्रुभूत।

ऐसे षड्यंत्रकारियों क्या थे उसूल ?
जिस संत के त्याग, तपस्या थे बहुमूल्य
मानवता, दरिद्रनारायण सेवा लक्ष्य थे अमूल्य,
ऐसे शख्सियत थे पं दीनदयाल जी देवता तुल्य।

विद्वता, योग्यता, अर्थशास्त्री, साहित्य में अजूबा,
मानवता फूल था, करते निर्धन देवों की पूजा,
राष्ट्रीयता की धार, व्यक्ति खुद्दार, उम्दा चिंतन थे तजुर्बा,
नहीं मिलेगा देश में ऐसा संत-महात्मा अब दूजा।

जनसंघ की पुकार थे, जन-जन की जयकार,
पत्रकारिता मे ललकार थे साहित्य की फुफकार।
हिंदुत्व की हूँकार थे मानवता को स्वीकार,
लक्ष्य दरिद्रनारायण पूजा, एकात्म मानववाद, परोपकार॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे आचार्य संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध  सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”