शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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माँ बिन आज लाड़ली बेटी
फूट-फूट कर रोती,
करके माँ को याद अश्रु से
अपने नयन भिगोती।
माँ होती तो दीवाली पर
मिल कर खुशी मनाते।
कौन मुझे ढांढस बँधवाए,
“काश आज माँ होती॥”
आज दिवाली के दिन भी
है घर में बड़ा अँधेरा,
फैल रहा चहुँओर दिखता
खामोशी का डेरा।
‘माँ बिन दीपावली’ है कैसी,
दीपक कौन जलाए।
दिल में तो बस माँ की यादें,
और कौन था मेरा॥
ताने सुन-सुन मुझको पाला
मुझ पर है ‘माँ का अहसान’,
माँ की गोदी में सुख मिलता
लगती मुझको स्वर्ग समान।
माँ ही आसमान होती है
इक बेटी की खातिर।
ईश्वर का प्रतिरूप है होती,
माँ ही थी मेरी भगवान॥
जब मैं मरणासन्न हो गयी
माँ ही तो टूटी थी,
होश मुझे कुछ जब आया
“माँ की वाणी फूटी थी।”
रो-रो कर बेहाल हो गयी
पूरी रात न सोयी,
चपत मार कर बोली-“पगली
मुझसे क्यों रूठी थी॥”
चली गयी माँ छोड़ के मुझको
दिल मेरा रोता है,
माँ है मेरे आस-पास कहीं
भान मुझे होता है।
कर्मों का अहसास कराता है
मुझको ‘माँ का अस्तित्व।’
माँ बिन मेरा अस्तित्व नहीं,
बस जीव बोझ ढोता है॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।