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माँ मेरी माँ

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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माँ तुमने ही जन्म दिया और मिट्टी से इंसान बनाया,
पाकर कष्ट अपार तुम्हीं ने दुनिया का है मुँह दिखलाया।
तेरा आशीर्वाद है माँ दुनिया सारी इज्जत देती,
चलता तेरे पद चिन्हों पर माँ तुमने ही ये मान दिलाया॥

माँ बस एक बार आ जाओ तुम बिन सूना जग सारा,
तुम बिन बियाबान बना है ये घर-महल ये चौबारा।
याद तुम्हारी पल-पल आए चैन नहीं आता मुझको,
अपनी गोद सुला ले मुझको आकर फिर से दोबारा॥

नहीं किसी से कह सकता मैं,माँ तुमको कुछ कहना है,
कुछ भी हो जाए लेकिन बस साथ तुम्हारे रहना है।
तेरे आँचल की छाया बिन नींद नहीं आती मुझको,
इस निर्मम दुनिया में मैया और जुल्म नहीं सहना है॥

माँ तुम हो कहाँ मुझे बताओ ढूँढ-ढूँढ कर हारा मैं,
तुम सूरज-चंदा कहती थी तेरा राजदुलारा मैं,
आँख से आँसू झरते हैं जब याद तुम्हारी आती है,
क्या तुम मुझको भूल गयी था तुझको सबसे प्यारा मैं॥

माँ तुम्हें याद आती है मेरी ? जैसे मुझको आती है,
सच कहता हूँ यादों से मेरी छाती फट जाती है।
तेरे सिवा भरी दुनिया में कोई नहीं रहा मेरा,
भटक रहा हूँ यहाँ-वहाँ ये दुनिया समझ न पाती है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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