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आईने की भाषा में लिपिबद्ध डॉ.उत्तमदास की ‘बाईबल’ लोकार्पित

दिल्ली।

दुनिया एक किताब है और हर राह एक सबक। आईने की भाषा यानी दर्पण की लिपि भी एक हुनर है,एक प्रेरणा है। इस हुनर के जादूगर डाॅ. उत्तमदास ने इसका प्रयोग विभिन्न धर्मग्रंथों को दर्पण लिपि में लिखकर किया है। वे युवा पीढ़ी के मन में धर्मग्रंथों के प्रति आकर्षण पैदा कर साम्प्रदायिक सौहार्द एवं सद्भावना का वातावरण बना रहे हैं।आईने की इसी भाषा में लिपिबद्ध डॉ. उत्तमदास की ‘बाईबल’ का लोकार्पण किया गया है।
दर्पण शब्द और भाषा को उल्टा लिखने की कला है जिसे हम दर्पण या किसी अन्य परावर्तक सतह की सहायता से पढ़ सकते हैं। इससे पढ़ने वाले व्यक्ति का आई. क्यू. विकसित होता है,वह अधिक चौकस और तेज अनुभव करता है। यह भाषा का प्रारूप सुरक्षा और गोपनीयता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। डाॅ. दास ने इस अनोखी विद्या में प्रारंभ में प्रमुख धर्मों के पवित्र ग्रंथों को लिखने का बीड़ा उठाया है। बेहतर करने की भावना को लेकर डाॅ. दास ने अपनी संस्कृति, अपने इसी ध्येय को मन में बसाए हुए बाइबल को दर्पण की भाषा में लिपिबद्ध कर दिया। इसका लोकार्पण राजधानी दिल्ली में ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ के प्रांगण में लेखक ललित गर्ग और विद्वान लेखक डाॅ. विनोद बब्बर द्वारा ‘लोकतंत्र की बुनियाद’ पत्रिका के बैनर तले हुआ। डाॅ. दास को पूरी उम्मीद है कि उनका यह प्रयास एक दिन जरूर रंग लाएगा और वे इस नई भाषा लिपि से दुनिया में शांति का संदेश संप्रेेषित करने में कामयाब होंगे। अब वे अरबी भाषा में कुरान एवं हिन्दी भाषा में भागवत गीता को लिपिबद्ध करने में व्यस्त हैं।
आज उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स ,इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स,एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स,वर्ल्ड रिकार्ड्स इंडिया, रिकार्ड होल्डर्स रिपब्लिक,यूनिक वर्ल्ड रिकार्ड्स सहित महत्वपूर्ण विश्व रिकार्ड बुक्स में दर्ज हैं। अपने हुनर से सद्भावना का संदेश बिखेरने वाले इस कलाकार ने असम के प्रख्यात संत श्रीमंत माधवदेव द्वारा लिखे पवित्र नामघोषा को भी अपने हुनर से आइने की भाषा में लिपिबद्ध करने की शुरुआत भी की। कहा जा सकता है कि डाॅ. उत्तमदास ऐसे सृजनधर्मी,प्रयोगधर्मी दर्पणलिपि के साहित्यकार हैं,जिन्होंने प्राचीन मूल्यों को नए परिधान में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है।

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