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अपनापन चाहिए

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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वर्तमान देश का
ऐसा है तो,
भविष्य कैसा होगा ?
सूनी आँखों में,
लाचारी लिए
न जाने क्या ढूंढ़ते हैं ?
सूखे होंठ
कहना चाहते हैं,
पर कौन सुनेगा इनकी ?
ग़रीबी की,
कोख़ के पाले
चलते हैं,
अभावों की
गर्म रेत पर।
नहीं देखते,
अपने जलते
नंगे पाँवों के छाले,
कौन इन्हें सम्भाले ?
बस दो रोटी देकर,
पूरा कर लेते हैं
हम अपना फ़र्ज़,
वो भी निःस्वार्थ कहाँ ?
कल के अख़बार में,
चित्र सहित ख़बर
जो छपवानी है,
दानकर्ता की।
आकाश में उड़ने वालों,
कभी तो नीचे
धरती पर भी,
पाँव रख कर देखो।
कभी तो
महसूस करो,
इनकी भूख
इनकी प्यास।
एक दिन तो
इनकी तरह,
अभावों में
जी कर देखो,
सिर्फ़ एक दिन।
आसमाँ फट जाएगा,
ज़मीं खिसक जाएगी
पैरों तले की,
जल जाओगे
इनकी लाचारी की गर्मी में,
बह जाओगे इनके
पसीने के बहाव में।
नहीं चाहिए इन्हें,
हमारी दया
इन्हें तो चाहिए,
हमारा प्यार और,

हमारा अपनापनll

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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