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`अग्निशिशु` रहे शहीद खुदीराम बोस

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जन्म दिवस-३दिसम्बर १८८९ विशेष…………
भारतमाता की वीर सन्तान शहीद खुदीराम बोस (बंगाली उच्चारण में क्षुदीराम बोस) को श्रद्धांजलि अर्पण…। भारतमाता की महान आत्मत्यागी वीर सन्तान शहीद खुदीराम बोस,जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के आन्दोलन में पराधीनता की ग्लानि से देश को मुक्त कराने के लिए अपने को अर्पित कर दिया। स्वाभिमानी शहीद बालक खुदीराम बोस के फाँसी के मंच में साहस्य जीवनदान से वाकरुद्ध होकर सम्पूर्ण विश्व स्तम्भित हुआ था।
बालक खुदीराम का जीवन बलिदान से उत्प्रेरित होकर इन्होंने देश की स्वतन्त्रता के आन्दोलन में अदम्य गति प्राप्त की थी।
सिर्फ यही नहीं,खुदीराम के जीवन बलिदान एवं सम्पूर्ण देश में छेड़े उग्र आंदोलन से भयभीत-कुण्ठित होकर ब्रिटिश शासन लज्जित भी हुआ था। सम्पूर्ण विश्व में आलोचित होकर ब्रिटिश शासन निन्दित भी हुआ। भारत का असामान्य एवं दु:साहसिक देशप्रेमी बालक निडर हो फाँसी का फन्दा गले में डालते हुए जीवन को बलिदान कर स्वाधीनता के उग्र आंदोलन में देशवासियों को जोश से भर गया था।
जीवन पल्लवित होने के पूर्व मुहुर्त में ही देशप्रेम के यज्ञ में खुद की आहूति देने वाला बलिदानी १९ साल की उम्र के वीर बालक खुदीराम बोस से फाँसी के दिन अंग्रेज हुकूमत बहुत भयभीत हो गई थी। अंग्रेज सरकार इतनी डर गई थी,कि खेल-कूद करने की उम्र वाले बालक को देशद्रोही की घोषणा करने के लिए सरकार को विवश होना पड़ा था। एक अग्नि समान वीर बालक खुदीराम बोस,एक महान क्रान्तिकारी,जिसकी शहादत ने सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की लहर पैदा कर दी,जिनके स्मरण में भावपूर्ण गीत रचित होने लगे थे।
भारत के इस सपूत तथा बंगाल के गौरव खुदीराम के बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास होने का कारण बड़ी बहन ने लालित-पालित किया। खुदीराम के देशप्रेम व राजनीति में रुचि रखने के कारण कक्षा ९वीं में ही पढ़ाई को छोड़कर स्वतंत्रता के आन्दोलन में कूद पड़े थे। जिस महती सभा में महान क्रान्तिकारी अरविंदो घोष एवं भगिनी निवेदिता ने भाग लिया,ऐसे क्रान्तिकारियों की गोपनीय सभा में बालक खुदीराम मात्र १३-१४ वर्ष की उम्र में ही भाग लिया करते थे। बालक खुदीराम अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ आयोजित बैठक तथा मिछिलों (रैलियों)में निडरता से नारेबाजी करते थे। महान क्रान्तिकारी सत्येन्द्र नाथ बोस के अनुगामी होकर सक्रियता से आन्दोलन में भाग लेकर ‘वन्दे मातरम’ एवं ‘सोनार बांग्ला’ पर्चे का वितरण करने लगे। जानकर आश्चर्य होगा कि मात्र १६ साल की उम्र में ही उन्होंने पुलिस स्टेशनों में बम रखे थे। क्रान्तिकारी संगठन ‘रिवोल्यूशनरी पार्टी’ में सदस्यता ग्रहण की थी। १९०६ में २ बार उनको पुलिस ने गिरफ्तार किया था। एक बार तो पुलिस को चकमा देकर भागने में तो सफल भी हो गए थे,पर दूसरी बार फिर गिरफ्तार हो गए तो गवाह न मिलने एवं नाबालिग होने का कारण प्रशासन ने चेतावनी देकर छोड़ दिया था। फिर भी खुदीराम का अभियान नहीं थमा। निडर खुदीराम ने १९०७-०८ में दोबारा बम से अंग्रेज प्रशासन के ऊपर हमला कर दिया।
अंग्रेज प्रशासन की बंगाल विभाजन की नीति का विरोध करनेवाले लाखों लोग तथा क्रान्तिकारियों के ऊपर निर्मम अत्याचार एवं क्रूर दण्ड देनेवाले निष्ठुर मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने के लिए क्रान्तिकारी एकजुट हो गए थे। किंग्सफोर्ड के कार्य से अंग्रेज प्रशासन ने प्रसन्न होकर उनको सत्र न्यायाधीश की पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में पदस्थ किया, तो उनको मारने का दायित्व खुदीराम एवं प्रफुल्ल चाकी ने लिया। बम से हमला करने से दुर्भाग्यवश २ निर्दोष महिलाओं के प्राण चले गए और किंग्सफोर्ड बच गए। तब प्रफुल्ल चाकी ने ख़ुद को गोली दाग कर आत्महत्या कर ली,पर खुदीराम बोस को पुलिस ने पकड़ लिया।
११ अगस्त १९०८ को खुदीराम हास्यरत हो निडरता से वीरतापूर्वक फाँसी के फन्दे को माल्यरूप में वरण करते हुए भारत तथा विश्व को हतप्रभ कर गए,जिससे स्वतंत्रता के संग्राम में अधिक जोश पैदा हो गया। इसके बाद तो ज्यादा से ज्यादा देशभक्ति मूलक गीतों का प्रचार-प्रसार होने लगा,और अंग्रेज प्रशासन भयभीत होने लगा। कहना गलत नहीं होगा कि,वीर शहीद खुदीराम बोस ने देश की स्वतंत्रता के लिए अमूल्य योगदान दिया,जिसे सदैव याद किया जाएगा। वन्दे मातरम,जय हिन्द।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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