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आलोक

कंचन कृष्णा मौर्या
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। इसे पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। जैसे-तमिलनाडु में इसे पोंगल नाम से,कर्नाटक-केरल में संक्रांति, गुजरात में उत्तरायण तथा उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,बिहार में खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। संक्रांति खुशियों का पर्व है। जिस तरह आकाश में रंग-बिरंगी पतंग उड़ती है,उसी प्रकार पूरे परिसर में हँसी-उल्लास भी फैल जाती है।
इसी तरह कहीनोर गाँव में भी खिचड़ी अर्थात मकर संक्रांति के त्यौहार के लिए धूम-धाम से तैयारी चालू थीl सभी जगह हर्ष-उल्लास का माहौल छाया हुआ था,परंतु उसी माहौल में एक लड़का था आलोक।' आलोक का अर्थ हैप्रकाश और रोशनी`,परंतु उसके नाम से उसका संसार पूर्ण रूप से विपरीत था। वह बिन माँ-बाप का सिर्फ ११ वर्ष का अनाथ बच्चा था।
वह दूसरों के खेतों में काम करता था,ताकि अपना गुजारा कर सके। बच्चा होने के कारण सब उसे सिर्फ खाना ही देते थे,कोई भी पैसे नहीं देता था,ताकि वह कुछ जरूरत की चीजें भी ले सकें। उसके कपड़े फटे-पुराने थे और घर भी नहीं थाl जिन खेतों में वह काम करता था,उन्हीं में कहीं से बोरी लाकर सो जाता।
एक दिन वो बाजार गया,ऐसे ही घूमने के लिए। खिचड़ी का त्यौहार था तो सभी जगह रंग-बिरंगी पतंग दिख रही थे। सभी बच्चों के माता-पिता उनके बच्चों को पतंग दिला रहे थे और नए कपड़े भी। उनको देखकर वो रोने लगा। एक दुकानदार ने उससे पूछा,परंतु उसने अपने रोने का कारण नहीं बताया। तब दुकानदार ने उसे एक पतंग दी,परंतु उसके पास तो पैसे नही थे;तो उसने कहा-‘चाचा जी मेरे पास पैसे नहीं है,मैं नहीं लूँगा।’
तो दुकानदार ने कहा-‘ले लो बेटा,पैसे नहीं चाहिए।’
वो पतंग ले के आगे बढ़ा तो मिठाई की दुकान दिखी। उसे वो मिठाई खानी थी,परंतु कैसे ! वह मिठाई की दुकान पर गया और बोला-‘क्या आप मुझे मिठाई दे सकते हो,पर मेरे पास पैसे नहीं हैं। आप ये पतंग ले लीजिए।’ दुकानदार ने मिठाई तो दे दी,परंतु आलोक को बहुत खरी-खोटी सुनाई और कहा,कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं भिखारी।
ये सभी दृश्य पतंग के दुकानदार की बच्ची गरिमा देख रही थी। उसने ये सभी दुकानदार अर्थात अपने पिता जी को बताया। कहा- ‘पिता जी मेरे पास भाई नहीं है,क्या आप इस बच्चे को मेरे भाई के रूप में ले आएंगे!’ गरिमा की बात सुन दुकानदार भी खुश हो गया कि,यदि इस बच्चे को ले आऊंगा तो उसकी जिंदगी भी सवर जाएंगी और मेरी बेटी को एक भाई का भी प्यार मिल जाएगा।
तब दुकानदार उसे अपने साथ ले गया और खूब प्यार से रखने लगा। इधर,आलोक को भी परिवार का प्यार मिला और उसके नाम जैसे ही उसकी दुनिया में भी रोशनी फैल गई। इस बार का मकर संक्रांति ने आलोक के जीवन में हकीकत की खुशियाँ भर दी।

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