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कर्म सदा करते रहो

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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कर्म बनाये भाग्य को,कर्म सभी का मूल।
दोष भाग्य को देत हैं,यही मनुज की भूल॥

भाग्य भरोसे बैठकर,कभी न सोचो व्यर्थ।
कर्म सदा करते रहो,यह जीवन का अर्थ॥

जीवन कर्म प्रधान है,करता जो सत्कर्म।
उसका भाग्य बुलंद हो,जीवन का यह मर्म॥

सुख-दु:ख मिलते भाग्य से,विधि का यही विधान।
भाग्य बना है कर्म से,कर्म दिलाये मान॥

भाग्य विधाता ईश हैं,जो रचते संसार।
होती जब उनकी कृपा,होय दुखों से पार॥

भाग्य कर्म के बीच में,भाग्य बड़ा या कर्म।
कर्म बनाता भाग्य को,यही मनुज का धर्म॥

कर्म करे तो फल मिले,कर्म न निष्फल होय।
कर्महीन जो ना करे,जीवन का फल खोय॥

कर्मगति है बड़ी गहन,इसे न समझे कोय।
जो समझे सत्कर्म को,निष्कामी वह होय॥

कर्म बिना इस सृष्टि में,होवे न व्यवहार।
इससे चलती सृष्टि भी,जो सबका आधार॥

कर्म-अकर्म-विकर्म को,समझे जो जीवात्म।
बन जाता निष्काम वह,पा लेता परमात्म॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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