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देश की दिनचर्या के नियोजन की जरूरत

ललित गर्ग
दिल्ली

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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पहली बार ऐसा सर्वे करवाया है जिससे पता चलता है कि देशवासी रोज के २४ घंटों में से कितना समय किन कार्यों में बिताते हैं। यह समय उपयोग सर्वे पिछले साल जनवरी से लेकर दिसम्बर के बीच हुआ और इससे कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आईं जो आगे नीति निर्माण के साथ-साथ जीवन-शैली को नियोजित करने में खासी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। ‘कोरोना’ महामारी ने हमारे जीने के तौर-तरीके को अस्तव्यस्त कर दिया है। हमारे द्वारा यह कामना करना अस्वाभाविक नहीं थी कि हमारे नष्ट हो गए आदर्श एवं संतुलित जीवन के गौरव को हम फिर से प्राप्त करेंगे और फिर एक बार हमारी जीवन-शैली में पूर्ण भारतीयता का सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित होगा। ‘कोरोना’ के जटिल ७ माह के बीतने पर हालात का जायजा लें,तो सामाजिक, पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन में जीवन-मूल्य एवं कार्यक्षमताएं खंड-खंड होते दृष्टिगोचर होते हैं। आँगन में दौड़ लगाकर पकड़-पकडाई,नदी-पहाड़ के खेल,लंगड़ी के दाम,अचार की बरनियां,चिप्स से भरी चादरें और बारिश के छपाकों की उड़ानें,तब जिन्दगी बेफ्रिक होती थी। हर व्यक्ति जीवन को उन्नत बनाना चाहता है,लेकिन उन्नति उस दिन अवरुद्ध होनी शुरु हो जाती है जिस दिन हम अपनी कमियों एवं त्रुटियों पर ध्यान देना बन्द कर देते हैं। यह स्थिति आदमी से ऐसे-ऐसे काम करवाती है,जो आगे चलकर उसी के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। रही-सही कसर पूरी कर देती है हमारी त्रुटिपूर्ण जीवन-शैली। असंतुलित जीवन है तो आदमी सकारात्मक चिंतन कर नहीं सकता। यह प्रश्न हर व्यक्ति के सामने होना चाहिए कि मैं क्यों जी रहा हूँ ?
हम मनुष्य जीवन की मूल्यवत्ता और उसके तात्पर्य को समझें। वह केवल पदार्थ भोग और सुविधा भोग के लिए नहीं,बल्कि कर्म करते रहने के लिए है। मनुष्य जन्म तो किन्हीं महान उद्देश्यों के लिए हुआ है। हम अपना मूल्य कभी कम न होने दें। प्रयत्न यही रहे कि मूल्य बढ़ता जाए,लेकिन यह बात सदा ध्यान में रहे कि मूल्य जुड़ा हुआ है जीवनमूल्यों के साथ। अच्छी सोच एवं अच्छे उद्देश्यों के साथ। हायमैन रिकओवर ने कहा कि ‘अच्छे विचारों को स्वतः ही नहीं अपनाया जाता है। उन्हें पराक्रमयुक्त धैर्य के साथ व्यवहार में लाया जाना चाहिए।’
यह सर्वे सीमित नमूनों के आधार पर भारी-भरकम नतीजे देने वाला सर्वे नहीं था। अंडमान निकोबार के ग्रामीण हिस्सों को छोड़ कर लगभग पूरा देश इसकी जद में आ गया। इन तमाम परिवारों के ६ साल से ऊपर के सभी सदस्यों से बातचीत की गई। सर्वे से पता चला कि एक हिंदुस्तानी हर रोज औसतन ५५२ मिनट यानी ९ घंटे १२ मिनट सोता है। ग्रामीण क्षेत्रों का पुरुष इस औसत से २ मिनट ज्यादा है।
बहरहाल,नियमित अंतराल पर ये आँकड़े सामने आते रहें तो इनसे समाज और परिवार के अंदर के समीकरणों में हो रहे बदलावों की झलक मिल सकती है और इनके आधार पर हम जीवन में काम के बटवारे को लेकर सर्तक एवं सावधान हो सकते हैं।
हमारे घर-परिवारों में ऐसे-ऐसे खान-पान, जीने के तौर-तरीके और परिधान घर कर चले हैं कि हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक पहचान ही धूमिल हो गई है। इंटरनेट एवं छोटे-परदे की आँधी ने समूची दुनिया को एक परिवार तो बना दिया है,लेकिन इस संस्कृति में भावना का रिश्ता,खून का रिश्ता या पारिवारिक संबंध जैसा कुछ दिखता ही नहीं है।
परिवार में परम्परा,टी.वी. जैसा मास मीडिया और खेलकूद से जुड़ी गतिविधियों में लगने वाला परिवार का औसत साझा समय है १६५ मिनट। सामाजिकीकरण,बातचीत,सामूहिक सहभागिता वाले अन्य कार्यों और धार्मिक कार्यों में भी शहरी-ग्रामीण और महिला-पुरुष में थोड़ा-थोड़ा अंतर है,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इन कार्यों में भी औसतन रोज १६५ मिनट ही लगते हैं। ये आँकड़े कई लिहाज से इस दौर के हमारे सामाजिक और पारिवारिक जीवन का आईना हैं।
इस जीवन की सबसे बड़ी बाधा है जीवन में कार्यों एवं परम्पराओं के लिए समय का असंतुलित बंटवारा,असंतोष की मनोवृत्ति और अतृप्ति। जब मन की चंचलता बनी हुई है,तो मनोबल नहीं बढ़ सकता। मनोबल की साधना ही नहीं है तो संकल्प बल मजबूत कैसे होगा ? देश के शीर्ष क्रम १ में औद्योगिक घरानों में गिने जाने वाले टाटा,बिड़ला, रिलायंस अब सब्जी-भाजी बेच रहे हैं। छोटे दुकानदार की रोजी-रोटी तो अब वे लोग हथिया रहे हैं। तृप्ति है कैसे ?
प्राचीन ऋषियों ने एक सूत्र दिया था-संतोषः परमं सुखं। संतोष परम सुख है और असंतोष का कहीं अंत नहीं है। जब तक इस सूत्र पर अमल होता रहा,स्थिति नियंत्रण में रही। जैसे ही संतोष की डोर कमजोर होना शुरू हुई,स्थिति तनावपूर्ण होती गई। यह बात व्यक्ति ही नहीं,समाज,राष्ट्र एवं विश्व व्यवस्था पर भी लागू होती है।
महामात्य चाणक्य को राजनीति का द्रोणाचार्य माना जाता है। उनका दिया हुआ सूूत्र है-शासन को इन्द्रियजयी होना चाहिए। बात शासन से पहले व्यक्ति की है। व्यक्ति का जीवन ही राष्ट्र का निर्माण है। इसलिए प्रयास वहीं से शुरु होने चाहिए।

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