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हूँ खुशकिस्मत `अध्यापक` हूँ…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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हूँ खुशकिस्मत अध्यापक हूँ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।

अज्ञान लोक यह जीवन है,
इसमें अंधियारा रचा बसा।
है परमपिता का परमाशीष,
जो उससे लड़ने मुझे चुना।
आदर्श बनाकर ज्ञान के पथ को,
मैं जगमग करने आया हूँ।

ज्ञान की ज्योति से मन के ,
मैं तम को भेदन आया हूँl
हूँ खुशकिस्मत अध्यापक हूँ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।

पग-पग में हो कठिनाई शूल,
भले मार्ग मिले या ना भी मिले।
चलना मुझको इस पथ पर है,
भले साथ किसी का मिले ना मिले।
नए रस्तों की पहचान बना,
मैं डगर बनाने आया हूँ।
उजड़ी हुई बस्ती को फिर से,
मैं नगर बनाने आया हूँ।
हूँ खुशकिस्मत अध्यापक हूँ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।

कल यह भी हो कि मैं भी ना होउं,
रहे बाग-बगीचे खिले हुए।
ज्ञान के उजियारों से हो,
अज्ञान के दम भी घुटे हुए।
और खुशबू मेरी हर आँगन से,
महके और उठती भी रहे।
इस माटी में मिल कर मैं,
हर दिल बस जाने आया हूँ।
हूँ खुशकिस्मत अध्यापक हूँ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथनll

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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