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माता सदैव भार्या नास्ति

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना……………..
माता सदैव-भार्या नास्ति अर्थात हे देवी! तुम माँ हो सकती हो किन्तु पत्नी कभी नहीं। स्वर्गलोक में अपने धर्मपिता इन्द्र के पास ब्रह्मास्त्र की विद्या लेने गए अर्जुन पर मोहित उर्वशी को माता सम्बोधित करने पर क्रोधित अप्सरा ने उसे क्लीवता का श्राप दिया,परन्तु धन्य था कौन्तय जिसने जीवनभर नपुन्सकता का बोझ ढोना तो स्वीकार किया,परन्तु चरित्र पर सेक न आने दिया। यही है अपनी संस्कृति जो ‘मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्’ अर्थात हर परस्त्री को माँ और दूसरे के धन को मिट्टी के समान मानती है। अमेरिका में स्वामी विवेकानन्द जी पर मोहित एक महिला ने कहा कि,वह उनसे उनके जैसा पुत्र चाहती है तो स्वामी जी ने उसे माँ बता कर उसकी इच्छा पूरी कर दी। एक-दो नहीं,अनेक प्रसंग हैं जो साक्षी हैं कि अपने समाज जीवन में महिला का कितना ऊंचा व सम्मानित स्थान रहा,परन्तु हैदराबाद में एक महिला चिकित्सक के साथ हुई दरिन्दगी बताती है कि नदी का एक दूसरा छोर भी है,समाज का स्याह पक्ष भी है जो महिला को केवल मात्र भोग-विलास की वस्तु मानता है। घटना के बाद से पूरा देश उबाल पर है। पीडि़ता चार पैरों वाले निरीह पशुओं का इलाज तो करती रही परन्तु दोपायेधारी दरिन्दों का शिकार हो गई। घटना को लेकर जिस तरह संसद से सड़क तक संग्राम मचा है उसको देखते हुए अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने त्वरित न्यायालय गठित करने की घोषणा की है,ताकि दोषियों को जल्द दण्ड मिल सके। आरोपियों की पहचान ट्रक के कर्मचारियों के रूप में हुई है,जिन्होंने युवती की स्कूटी को पंक्चर कर दिया और सहायता के बहाने उसे ट्रक के पीछे खींच लिया व उत्पीडऩ के बाद उसकी निर्ममता से हत्या कर दी। बाद में उसकी लाश को जला दिया। अगली सुबह एक दूधिये की सूचना पर पुलिस ने लाश बरामद की। इस घटना ने जहां पूरे देश में महिला की सुरक्षा को बहस के केन्द्र में ला दिया,वहीं मानो पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
आज से लगभग ७ साल पहले दिल्ली में इसी तरह के हुए `निर्भया` काण्ड के बाद भी यूँ ही देश में आक्रोश का ज्वार फैला था,पर केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय दण्डावली के अतिरिक्त लैंगिक अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम-२०१२ की व्यवस्था करने के बावजूद इन अपराधों में कमी नहीं आई है। आज भी पहले की भान्ति न केवल इस तरह के अपराध हो रहे,बल्कि अबोध शिशुओं तक को इसका शिकार बनाया जा रहा है। देखने में आया है कि इन नियमों के पालन में एकरूपता व समान विधि के अभाव के चलते यह कानून प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। हैदराबाद की घटना का शोर मचने के बाद वहां की सरकार ने त्वरित न्यायालय गठित करने की घोषणा कर दी,परन्तु यह असम्भव है कि इस तरह के हर अपराध के बाद समाज इसी तरह सड़कों पर उतरे। यह तो कानूनी प्रक्रिया में समानता होनी चाहिए कि इस तरह के अपराधों के बाद सभी पीड़ितों को त्वरित न्याय की सुविधा मिले। न्याय में विलम्ब भी इन अपराधों को प्रोत्साहन देने का बड़ा कारण है। दुखद आश्चर्यजनक तथ्य है कि,इतना शोर-शराबा होने के बाद निर्भया काण्ड के अपराधियों को अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है। अपराधियों के बालिग-नाबालिग होने का मुद्दा उनको निर्भय दान देता प्रतीत होता दिखाई दे रहा है।
इस मुद्दे का सामाजिक पक्ष भी है कि,हमें समाज को संस्कारवान बनाने की दिशा में गम्भीर प्रयास करना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दिल्ली में गीता जयन्ती समारोह में बोलते हुए ठीक ही कहा कि हमें मातृशक्ति के प्रति अपनी दृष्टि में बदलाव लाना होगा। घर, परिवार और समाज में मातृ शक्ति के प्रति सम्मान का भाव पैदा करना होगा। घर से बाहर महिलाओं की सुरक्षा जरूरी है,इसके लिए समाज में व्यापक सुधार और बदलाव की जरूरत है। महिलाओं को देखने की दृष्टि साफ होनी चाहिए। हमें घर,परिवार और समाज में ही लोगों को इस आशय का प्रशिक्षण देना होगा। सरकार कानून बना चुकी है,कानून पालन में शासन-प्रशासन की ढिलाई ठीक नहीं है,लेकिन उन पर ही सब-कुछ छोड़ दें तो ये भी नहीं चलेगा क्योंकि ये जो अपराध करने वाले हैं,उनकी भी माता-बहनें हैं। उनको किसी ने सिखाया नहीं है। दूसरों की महिलाओं की ओर देखने की दृष्टि शुद्ध होनी चाहिए। संसद में भी सभी दलों ने एक स्वर में इसकी न केवल निन्दा की,बल्कि कानून को और सख्त बनाने की जरूरत पर भी जोर दिया है।
महिला सुरक्षा का विषय स्वैच्छिक नहीं,बल्कि सामाजिक जीवन में उतना ही अनिवार्य है जितना कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए हवा और पानी। मनु स्मृति में कहा गया है कि जहां स्त्रियों को मान-सम्मान मिलता है,वहीं देवताओं का वास होता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि वह कुल तभी नष्ट हो जाता है जब कुलीन स्त्रियां दु:खी रहती हैं। भविष्य पुराण में लिखा है कि स्त्रियां जिन घरों को शाप देती हैं,वे घर दुर्दशाग्रस्त हो जाते हैं। उपरोक्त सबके बावजूद आज की स्थिति यह है कि भारत में नारी अपने को असुरक्षित समझती है। पिछले दिनों हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार सुबह सैर करने निकली औरतें आत्मरक्षा के साधन लेकर निकलती हैं। दौड़ लगाने जाने वाली करीब ६००० औरतों के सर्वेक्षण में बताया गया है कि,४२ प्रतिशत औरतें अपनी सुरक्षा को लेकर इतनी भयग्रस्त रहती हैं कि नियमित दौडऩे नहीं जा पातीं। कुछ अकेली दौडऩे की बजाय समूह का सहारा लेती हैं। महिला सुरक्षा का मामला समाज के घिनौने चेहरे का पर्दाफाश करता है। वर्तमान समय में जब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर न केवल खुद आगे बढ़ रही,बल्कि अपने परिवार व देश का नाम भी रोशन कर रही हैं तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को समुचित सुरक्षा देना सभी का दायित्व है। इसका सबसे बड़ा दायित्व तो खुद महिलाओं पर ही है,क्योंकि उसे सुरक्षा के लिए दूसरों पर आश्रित रहना बन्द करना सीखना होगा। किसी विचारक ने ठीक ही लिखा है कि -“पांचाली तुम ही शस्त्र उठाओ,शायद कृष्ण अब न आएंगे।”

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