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अम्मा

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

‘अम्मा’, ऑफिस में काम करने वाली साठ-बांसठ की बुजर्ग महिला,जिसे सब ‘अम्मा’ कह कर बुलाते थे। झुकी हुई कमर,झुर्रियों वाला पोपला मुँह,गहरा- सुर्ख लाल सिंदूर,चेहरे पर बड़ी बिन्दी,हाथों में कांच की चूड़ियाँ और पैरों में पायल…ऐसा था अम्मा का बाहरी व्यक्तित्व।
अंदर से कभी मैं उन्हें जान नहीं पाई।
‘अरे! मैडम जी आपका आज ‘उपवास’ है। कैन्टीन से ‘फ़रियाली’ कुछ ला दूँ,वो जोशी मैडम का भी लेने जा रही हूँ,आज वो खाना नहीं लाई।’
‘नहीं अम्मा,रहने दो। आज लाई हूँ।
उसे सबका पता रहता था। किसका ‘उपवास’ है, कौन खाना आज नहीं लाया,सबका ध्यान एक माँ की तरह रखतीं थी। इसके कारण कई बार वह बॉस की डांट भी खाती थी,पर अपना काम नहीं छोड़ती।
आज ‘अम्मा: रोज से भी ज्यादा सज-संवर कर आई थी,पैरों में महावर,हाथों में मेहंदी और पीछे हमेशा की तरह चोटी में लटकता लाल फीता।
‘अम्मा’,आज क्या बात है…?,बड़ी सज-धज कर आई हो,आज कुछ है क्या ?’ यह सुनकर अम्मा एक नवयुवती की तरह शरमा गई…पास में रखी ‘बेंच’ पर बैठती हुई बोली-‘आज मेरे ‘ब्याह’ की तारीख है।’
‘अरे वाह अम्मा जी,फिर तो आपको बहुत सारी बधाई!’
तभी अंजली मैडम हँसते हुए बोली-‘फिर तो अम्मा जी आज तो ‘पार्टी’ होगी।’
हम सब ‘अम्मा’ केआस-पास बैठ गए,ऐसे भी आज बॉस छुट्टी पर थी। ज्यादा काम भी कुछ नहीं था।
‘आपके उन्होंने आपको क्या दिया ‘गिफ्ट’ में ?
मैंने धीरे से हँस कर पूछा।
‘अम्मा’ के चेहरे पर अचानक उदासी छा गई और आँखें डबडबा गई।
‘अम्मा क्या हुआ…आप रो क्यों रही हो। मैंने कुछ गलत कह दिया ?’ मैंने घबराते हुए पूछा।
‘नहीं मैडम जी,ऐसी बात नहीं। आज उनकी याद आ गई…!’
‘मतलब…वो आपके साथ नहीं रहते,या फिर…।’ इतना कहकर मैं चुप हो गई।
आज वह जैसे बीते गलियारों में चली गई थी,बोली-
‘पता नही वो कहॉं हैं ? वो तो आज से बीस वर्ष पहले ही मुझे छोड़ चले गए थे किसी और औरत के चक्कर में…। जबसे अकेले ही अपने ‘बच्चों’ को मेहनत-मजदूरी कर पाल रही हूँ। पता नहीं अभी वो जिन्दा है ? या मर गए!’ ऐसा कहते हुए अम्मा ने पल्लू से अपनी आँखें पोंछ ली,जैसे अपना दर्द छुपाने की कोशिश कर रही हों। ऐसा लगा मानो आज बर्षों का अनकहा कह देना चाहती हो।
तभी मैंने व्यथित हो कर कहा-‘फिर अम्मा आप ऐसे आदमी के लिए इतने दिनों से ‘साज-श्रृंगार’ क्यों कर रही हो ? जबकि आपको पता भी नहीं,वो ‘जीवित’ भी हैं ? या नहीं।’
‘नहीं… ‘मैडम जी,वो मेरे लिए आज भी जिंदा हैं। मेरा ‘ब्याह’ तो बारह साल की उमर में ही हो गया था। तबसे मैंने तो उनसे ही ‘प्रेम’ किया,और आज भी करती हूँ। मेरे लिए तो वो आज भी जिंदा है।चाहे वो किसी के साथ भी रहें,क्या हुआ वो बदल गए,मैं तो नहीं बदलूं! अब इस ‘उमर’ में मैडम जी!
हो सकता है कभी मेरी याद आए तो वापस आ जाए… ।’ ऐसा कहते हुए वह उठी और झुकी कमर में हाथ लगाते हुए सबके लिए चाय बनाने लग गई।
‘मैडम जी,आपके लिए काफी बना दूं न! चाय तो आप पिओगे नहीं।’
आज उसे जाते हुए देख लगा कितना तूफान था इसके दिल में। मैं अंदर तक सिहर उठी,ऐसा लगा मानो ‘अम्मा’ का दर्द मेरे अंदर उतर गया हो। यादों में वापस आना कितना पीड़ा देता है।
अनजाने में शायद हमने उन्हें पीड़ा पहुँचा दी थी। मैं सोच रही थी,आज भी,ऐसा ‘प्रेम’ भी कोई करता है ? यह कैसी ‘आस्था’ है,लगा जैसे आज एक अलग अम्मा से मिली हूँ।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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