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एक दिन खो जाऊँगा

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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प्रीत का सागर हूँ
छलक जाऊँगा नीर की तरह,
अनजान गीतों का साज हूँ
बजता रहूँगा घुँघरुओं की तरह।

एक दिन
खो जाऊँगा मैं,
धुंध बन कर
इन बादलों के संग में।

मेरे शब्द
जिन्दा रहेंगे फिर भी,
खुशबूओं-सी रच,
साँसों के हर तार में।

बातें मेरी
गूँजेगी शहनाईयों-सी,
अंकित होकर
दिलों की जज्बात में।

सदाएँ मेरी
हवा का झौंका बन,
बिखर जाएंगी
विस्मृति की दीवार में।

अक्स मेरा
दिख जाएगा सामने,
दौड़ कर यादें मेरी
मिल जाएंगी तुमसे गले।

परछाईं मेरी
नजरों में समाएगी,
भूलना चाहोगे तुम,
मिल जाऊंगा मैं सुनसान में।

निशानियाँ मेरी
दिलों में रह जाएंगी,
खो जाऊँगा कहीं
मैं वक्त की मझधार में।

मुसाफिर हूँ,
गुजर जाऊँगा मैं वक्त की तरह।
जाते-जाते दिलों में ठहर जाऊँगा,
मैं दरख्त की तरह॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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