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भ्रामक विज्ञापनों से बचें उपभोक्ता

रोहित मिश्र,
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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सुबह-सुबह अखबार के पृष्ठ को पलटा तो मेरी नजर अखबार के विज्ञापन पृष्ठ पर चली गर्ई,पूरा एक पृष्ठ तो छोटे-छोटे विज्ञापन के स्तम्भों से पटा पड़ा था।
एक स्तम्भ देखा तो ऐसे लग रहा था कि,लोग बेवजह ही सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर कोसते रहते है। तुम पढ़े-लिखे हो या अनपढ़… ३०-४० हजार रुपए महीना तो तुम्हारी जेब में है। दूसरे स्तम्भ पर नजर दौड़ाई तो अपनी लम्बाई की फ्रिक होने लग गई कि,अभी तो मैं २८ का ही हूँ और इसके दिए उत्पाद तो ३४ की उम्र तक असर करते हैं। तीसरा विज्ञापन देखा तो मुझे अपने वैवाहिक जीवन के दाम्पत्य सुख की ही चिंता सताने लग गई।
ये तो हुई प्रिंट मीडिया की बात,जिसमें इसी तरह के सैकड़ों विज्ञापन अखबारों के इधर-उधर,ऊपर- नीचे,कोने आदि में छोटे-छोटे स्तम्भों में दिखते मिल जाएंगे। उपभोक्ता यानि ग्राहक इनके बिछाए जाल में इस कदर मोहित हो जाता है,जैसे किसी ‘डूबते को तिनके का सहारा’ मिल गया हो।
विज्ञापन में दिए गए पर नम्बर महिला कर्मचारी से बात करके उपभोक्ता को ऐसा लगता है,जैसे उसने किसी स्वर्ग की अप्सरा से वार्तालाप कर ली हो। फिर उसके दिए गए पते पर पहुँचते ही उपभोक्ता को ऐसा लगता है,जैसे उसे उसकी उम्मीद की आखिरी मंजिल मिल गई हो,और उसकी सदियों की तपस्या पूरी हुई हो गई हो। आफिस के अंदर बैठे महिला-पुरुष कर्मचारी उसको बातों के जाल में इस कदर फँसाते हैं,जैसे उसकी सारी समस्या का समाधान यहीं पर है। फिर वह बिना अधिक दिमाग लगाए हजार-दो हजार के उत्पाद-सामान को ऐसे खरीदेगा,जैसे-बच्चे रुपए-दो रुपए की टाफी खरीद रहे हों। बस,भ्रामक विज्ञापनकर्ता का हो गया काम। एक बार किसी की जेब में पैसे चले गए तो वो थोड़ी वापस आते हैं। जब उत्पाद का कोई असर नहीं हुआ तो उपभोक्ता अपना माथा पीटने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता।
यही हाल आजकल इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट मीडिया के मंच पर भी है। बस दोनों में अंतर ये है कि हम वहाँ आफिस जाकर उत्पाद की शिकायत कर सकते हैं और यहाँ ई-कॉमर्स के बेकार उत्पाद के विज्ञापनकर्ता को सिर्फ अपने घरों में ही बुरा भला कह सकते हैं। ई-कामर्स और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मंच प्रिंट मीडिया के मंच से किसी भी स्तर से कम नहीं होता है। इसके भी अंदाज निराले रहते हैं।
यहाँ पर तो विज्ञापनों के लिए बकायदा कर्ई चैनल ही विज्ञापन के लिए प्रसारित हो रहे हैं। यानि बकायदा बड़ा स्थान-मंच तैयार रहता है,जहाँ चमचमाते स्टूडियो में विज्ञापनकर्ता आकर्षक और खूबसूरत युवक-युवतियों के माध्यम से उपभोक्ता को अपने जाल में सम्मोहित करने का प्रयास करता है।
हम जब भी पास की सब्जी मंडी में सब्जियाँ खरीदने जाते हैं तो मोल-भाव के साथ सब्जियों को ऊपर से नीचे तक इस प्रकार जाँचते हैं,जैसे कोई पुलिस अधिकारी सबूत की तलाश में घटनास्थल की जाँच करता हो।
कहने का आशय यह है कि,हम राह पर लगाए या अपने आसपास की दुकानों से वैसे तो वस्तुओं को जाँच-परख कर ही खरीदते हैं,पर प्रिंट,ई-कॉमर्स के मंच पर जाँच-परख का निर्णय खुद विज्ञापनकर्ता पर छोड़ देते हैं,जैसे उसने अपना उत्पाद हमारी भलाई के लिए ही बनाया हो,जबकि वह पैसे कमाने के लिए बनाता है।
आज के समय वस्तुओं-उत्पाद की अनेक शिकायतों के कारण उपभोक्ता की सहूलियत के लिए उपभोक्ता फोरम जैसा मंच मौजूद है। फिर भी उपभोक्ताओं को विज्ञापनकर्ताओं के सम्मोहन जाल में फँसने के बजाय अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए भारत सरकार के आईएसआई निशान से मान्यता प्राप्त उत्पादों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। यही सही मायने में जागरूक उपभोक्ता की पहचान होगी।

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