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विकास का आधार स्तंभ प्रवासी श्रमिकों का पलायन

रचना सिंह ‘रश्मि’
आगरा(उत्तरप्रदेश)
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‘कोरोना’ का कहर पूरे विश्व में छाया है, जिसके फैलाव को रोकने के लिए सरकार ने सम्पूर्ण भारत में तालाबंदी की,जिससें पूरा देश थम गया है। सभी गतिविधियां बंद है। हवाई,रेलवें,सड़क यातायात बंद है। शहरों व गाँवों की सड़कें और गलियां सूनी हैं। जो जहाँ है,वो वही ठहर गया है। सरकार ने मूलभूत आवश्यकताओं के लिए राशन, दवाई आदि की दुकानों को ‘सामाजिक दूरी’ के साथ खोलने और घर पहुँच की सुविधा दी है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था,अब वह कहां जाए ? इन प्रवासी मजदूरों की जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए घर में राशन। घर में बैठकर कोरोना विषाणु से जंग जीतने के लिए इनके पास कोई विकल्प नहीं है।
तालाबंदी के कारण सारा कामकाज ठप है, व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों,दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे,उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके पास काम नहीं,तो पैसा नहीं खाने के लाले उपर से कमरे के किराए के लिए दबाव,भूख और बदहाली में कोरोना संक्रमण और जमा पूंजी के खत्म होने के साथ मौत की उल्टी गिनती के बीच बिलखते परिवार की जान की सुरक्षा और भविष्य की चिंता,आखिर हालात से मजबूर जाएं तो जाएं कहां! हालातों और तालाबंदी से प्रवासी मजदूरों में अनिश्चितता का डर और घबराहट की स्थिति है। ऐसे में शहरों से पलायन कर अपने घर-गाँव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
तालाबंदी से देश के बड़े-छोटे शहरों से हजारों की संख्या में इन श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया है। पैदल,नंगे पैर,भूखे-प्यासे पुरूष, महिला,बजुर्ग बच्चों समेत समूहों में ये लोग सड़कों पर निकल पड़े हैं। शहर छोड़कर घर-गाँव लौट रहे मजदूरों को भी इस बात की गहरी चिंता है कि पहुंच कर करेंगे क्या ? कोरोना फैलने के साथ ग्रामीण इलाकों में रोजगार की समस्या खड़ी होगी। शहरों से मजदूरों के पलायन का एक कारण कोरोना तो दूसरा बड़ा कारण भूख है। तालाबंदी के दौरान होने वाला पलायन सामान्य दिनों की अपेक्षा होने वाले पलायन से एकदम उलट है। अमूमन हम सब रोजगार पाने व बेहतर जीवन जीने की आशा में गाँवों और कस्बों से महानगरों की ओर पलायन होते देखते हैं, परंतु इस समय महानगरों से हो रहा पलायन नि:संदेह चिंताजनक स्थिति है। मजदूरों के इस पलायन से देश के बड़े औद्योगिक केन्द्रों में उत्पादन प्रभावित होगा। अभी भले ही उद्योगों में काम कम है,या रुक गया है परंतु तालाबंदी समाप्त होते ही मजदूरों की मांग में तेजी से वृद्धि होगी। मजदूरों की पूर्ति न हो पाने से उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा, वहीं तालाबंदी समाप्त होने के बाद मजदूर वर्ग की महानगरों में कार्य हेतु वापस न लौटने की भी आशंका है।
विकास और अर्थव्यवस्था का पहिया चलाने के लिए प्रवासी मजदूर चाहिए, इनके बिना विकास संभव नहीं है।
पंजाब,हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य के लिए बड़े पैमाने पर मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है, पलायन की स्थिति में इन राज्यों की कृषि गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं। दिल्ली,मुंबई,चेन्नई, कोलकाता,बंगलुरू और हैदराबाद जैसे अन्य महानगरों से मजदूरों के पलायन से रियल एस्टेट क्षेत्र बड़े पैमाने से प्रभावित हो सकता है।
बिहार,उत्तर प्रदेश,ओडिशा,राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं,पर पलायन के कारण इन राज्यों में रोजगार का संकट भीषण रूप ले रहा है। रोजगार के अभाव में इन राज्यों में सामाजिक अपराधों में वृद्धि हो सकती है।
तालाबंदी की स्थिति केन्द्र और राज्य सरकारों को ध्यान देना होगा कि गरीब लोग भी अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इन तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए सबसे पहले असंगठित क्षेत्र के कामगारों को चिन्हित करना होगा। प्रवासी श्रमिकों का न्यूनतम वेतन एवं कार्य सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ उनका बीमा भी होना चाहिए।
चिकित्सा देखभाल,दुर्घटना मुआवजा,काम करने के घंटे सुनिश्चित करना,बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था,बैंक में खाता खुलवाने संबंधी उपायों पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इसमें कारखाना मजदूरों के साथ रेहड़ी लगाने,घरों में सेवा देने वालों को भी शामिल किया जाना चाहिए। सरकार को श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षित करना होगा।

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