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जलते मुझे अंगार मिले

सुदामा दुबे 
सीहोर(मध्यप्रदेश)

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चंदन मैंने चूमना चाहा लिपटे व्याल हजार मिले,
अम्बर मैंने छूना चाहा जलते मुझे अंगार मिले।

कुदरत की मैंने देखी है रीत निराली-सी भाई,
फूलों को सहलाना चाहा कंटक मुझे प्रहार मिले।

बंजारे-सा घूमा करता मैं तो सारी दुनिया में,
घर में जब रहना चाहा शक करते मुझे दीवार मिले।

रिंदों की बस्ती से अक्सर प्यासा ही मैं लोटा हूँ,
जब मस्ती में झूमना चाहा सदा मुझे बाजार मिले।

गीत को जब मैं गाने बैठा आज अचानक से यूँ ही,
संग में साज बजाना चाहा टूटे मुझे सितार मिले।

पतझड़ पूरा बीत गया था जब मैं उपवन में पहुँचा,
मौसम चौमासे में देखो उजड़ी मुझे बहार मिले।

कैसे हाल बताऊँ यारों तुमको अपनी किस्मत का,
मेरे अरमानों की डोली लूटते मुझे कहार मिले॥

परिचय: सुदामा दुबे की की जन्मतिथि ११ फरवरी १९७५ हैL आपकी शिक्षा एम.ए.(राजनीति शास्त्र)है L सहायक अध्यापक के रूप में आप कार्यरत हैं L श्री दुबे का निवास सीहोर(मध्यप्रदेश) जिले के बाबरी (तहसील रेहटी)में है। आप बतौर कवि काव्य पाठ भी करते हैं। लेखन में कविता,गीत,मुक्तक और छंद आदि रचते हैंL

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