श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
*******************************************
अब मैं हार गई हूँ चलते-चलते,
उसे ढूंढ नहीं पाई चलते-चलतेl
जिधर देखती हूँ उधर रेत ही रेत है,
गया किस राह,कुछ नहीं संकेत हैl
दिल मेरा,चिराग जैसा रहा जलते,
थक गई हूँ मैं,अब उसे ढूंढते-ढूंढतेl
मैं बेचारी,लजाती रही सदा उससे,
खफा रहता,ना जाने क्यों मुझसेl
चलता था सदा पीछे-पीछे तन कर,
छोड़ा साथ जो देखा पीछे मुड़ करl
स्वर्ग से सुंदर घर था मेरा,
बाबा ने ढूंढा वर था मेराl
संग जीने-मरने का,प्यार था मेरा,
तू ही साजन गले का हार था मेराl
आहट तो दे देते,कहां हो तुम बैठे,
कुछ तो बताते तुम,काहे हो रूठेl
थक गई हूँ मैं चलते-चलते,
हार गई हूँ तुझे ढूंढते-ढूंढतेll
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।