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सामाजिक मूल्यों को पोषित करती कृति ‘सपनों के सच होने तक’

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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पुस्तक समीक्षा……………….


एक कविता जितनी देर में पढ़ी या सुनी जाती है, उससे हजार गुना अधिक समय में वह कागज पर अवतरित होती है,और उससे भी हजार गुना समय उस विषय को चिंतन-मनन करने में कवि लगाता है।
लब्ध प्रतिष्ठित कलमकार राजकुमार जैन ‘राजन’ की कविताओं का दूसरा संग्रह ‘सपनों के सच होने तक’ शीर्षक से हाल ही में दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। राजन नियमित सृजनधर्मी हैं,विचार और चिंतन और सृजन तीनों प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही वे अपना लिखा सार्वजनिक करते हैं। इक्यावन कविताओं के इस संग्रह में सामाजिक सरोकार की रचनाएँ ज्यादा है,जो होना भी चाहिए। जब हम समाज को अपनी रचनाएँ सौंप रहे हैं तो सामाजिक सरोकार प्राथमिक होना चाहिए। राजन हमेशा समाज को देने का भाव रखते हैं,इसीलिए वे समाज के हर पहलू पर स्वयं को केन्द्र में रखकर लिखते हैं।
समाज की दोहरी मानसिकता पर उनकी कविता ‘विष बीज’ जोरदार प्रहार करती है। वे रचना के अंतिम पदों में लिखते हैं-‘छोटा हो या बड़ा/अपराध अपराध ही होता है/जो विष बीज बोता है/जिसके जहर से/समाज मृत होता है/दोहरा जीवन,दोहरी संस्कृति/जीना छोड़ना होगा/तभी उद्घोष होगा/सत्यम, शिवम,सुंदरम का।’ राजन कविता ‘प्रश्न और उत्तर’ में जो कहते हैं,वो बहुत गंभीर बात है। वे कहते हैं-‘जिंदगी के थपेड़ों में/गुम हो हो चुके प्रश्नों को/खोज लेने से क्या होगा/जबकि बहरे हुए समय में/उत्तरों का छोर कहां है।’ वर्तमान में जो मूल्य हृास हो रहे हैं, उन्हें बचाने की एक अच्छी कोशिश है। वे
‘नये युग की वसीयत’ रचना में लिखते हैं-‘धोखा यहाँ परम्परा/झूठा गढ़ा इतिहास ही/अब हमारी संपदा है /क्या मान्यताओं की/झूठी लक्ष्मण रेखा/अब टूटेगी ?/मुक्त होंगे इनकी कैद से हम/उग रहा है नया सूरज/नया प्रकाश फैलाने को।’
वेदना और संवेदना कविता का आत्म तत्व होता है, एक अच्छी रचना इन तत्वों के बिना बन ही नहीं सकती है। बाढ़,नये युग की वसीयत,मानवता का कत्ल,नई पीढ़ी जैसी रचनाएँ समाज की पीड़ा है। पीड़ा प्रश्न के डर,मैं कृष्ण बोल रहा हूँ,मानवता का पुनर्जन्म जैसी कविता पुरातन आख्यानों का नव स्वरूप है जो आज भी समाज में जिंदा है। मेरे भीतर बहती है नदी,लालिमा सूर्योदय की,पुनर्जन्म, समर्थन,चलो,फिर से जी लें जैसी रचनाएँ जीवन को नव चेतना देने में सहायक है।
जब समाज में बहुत ज्यादा असामाजिकता आती है और मानव अमानवीय होने लगता है तब राजन की कविता के बदले तेवर लिखते हैं-ईश्वर मर गया है, ऐसा एक दीप जलाऊं,प्रश्नों की परछाईयाँ। ये रचनाएँ बोध करवाती है कि समाज में यह गलत हो रहा है। इस कृति में कईं रचनाओं में एक संदेश दोहराया गया है वह है सत्यम,शिवम,सुंदरम,जो संसार का सार तत्व है और स्वयं का बोध करवाता है।
श्री जैन की यह कृति पूरी तरह से संवेदना से भरी हुई है। हर रचना में संवेदनशीलता दिखाई दे रही है। यह कृति सामाजिक मूल्यों को पोषित करती है। ‘सपनों के सच होने तक’ के लिए बधाई…।

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