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पिंजरा

कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
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ये पिंजरा और पक्षी दोनों ही इंसान की जिंदगी से जुड़े हैं,कुछ ऐसा ही रिश्ता है इंसान का अपनी रिश्तों की डोर सेl तुम जितना रिश्तों को चार दीवारी में बंद करना चाहोगे,जितना उसे प्यार और विश्वास के नाम पर बांधकर रखना चाहोगे,तुम चाहोगे कि,वो हर पल पास हो,सामने हो नजरों के और उसको तुम अपनी जिंदगी में गाँठ की तरह बांध लो कि,बस यही दुनिया है,पर जैसे पिंजरा खुलने पर पंछी उड़ जाता है,और एक सुकून पा लेता है,बस वैसी ही एक अनकही-अलिखित कहानी अपनी जिन्दगी में साथ चलती रहती है,और इस बात का हमें एहसास भी नहीं होता। जब इंसान रूपी परिन्दे को ये एहसास होता है कि,मैं तो कैद हूँ उन परम्पराओं के पिंजरे में,बंधा हूँ उन रिश्तों की बेड़ियों से,जहाँ अपने पंख फैलाकर उड़ नहीं सकताl तब वो नफरत करने लगता है उन रिश्तों से,उन बंधनों से जिसे समाज ने प्यार और जिम्मेदारियों का नाम दिया है। फिर धीरे-धीरे टूटने लगता है रिश्तों से जुड़ा दिल का हर एक तार। एक दिन सिर्फ वो परिंदा अकेला उस वक्त की तलाश में रहता है कि,अब मैं सब बंधनों से आजाद हो बस अपने पंख फैलाऊँ और उड़ लूँ ऊँची उड़ान,और इस छोटी-सी जिंदगी की हर ख्वाहिश पूरा करने को छू लूँ आसमान। वैसे ही,जैसे पिंजरे में कैद वो पंछी जैसे ही पिंजरा खुलता है,अपने पंख फड़फड़ाकर ऊँची उड़ान को निकल पड़ता है। बिना किसी परवाह के,बहती नदियों से प्यास बुझाने और ऊंचाइयों पर लगे वो मीठे फलों को खाने का आनन्द उठाने और खुल के शुद्ध हवा में साँस लेनेl बस वैसे ही,जैसे एक समाज के बंधनों और जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे उस हर एक इंसान में छुपा एक परिंदा है,जो समाज के पिंजरे से आजाद होना चाहता है। वो उड़ना चाहता है,ऊंचाईयों को छूना चाहता है, वो अब जीना चाहता है,अपने जीवन के गीत को खुल के गाना चाहता है…और बस पिंजरा खुलते ही वो कैद पंछी उड़ जाता है। वहाँ, जहाँ से कोई उसे फिर बांध न सके। जैसे ही वो अपने-आपको समाज के बंधनों और व्यर्थ की मान्यताओं से स्वतंत्र पाता है,उड़ जाता है। पिंजरा रह जाता है,और पंछी उड़ जाता है,शेष रह जाती हैं यादें…।
आज के इस वर्तमान दौर में हर एक व्यक्ति अपने-आपको पिंजरे में कैद होने का एहसास लिए हैl जैसे ही ये तालाबन्दी का पिंजरा खुलता है,सभी अपनी ख्वाहिशों के पंखों को फड़फड़ाकर एक सुकून की साँस भर लेंगे।अपने घरों से बाहर निकल हर एक व्यक्ति अपनी जिन्दगी में अपने तरीके से रंग सजाने की तमन्नाओं को पूरा करने में जुट जाएगा। इन्सान रूपी परिन्दा फिर अपने पंख फैला कर पहले की तरह इस पिंजरे से आजाद हो जाएगा।


परिचय-कविता जयेश पनोत का बसेरा महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई स्थित खारकर अली रोड पर है। १ फरवरी १९८४ को क्षिप्रा (देवास-मप्र)में जन्मीं कविता का स्थाई निवास मुम्बई ही है। आपको हिन्दी,इंग्लिश, गुजराती सहित मालवी भाषा का ज्ञान भी है। जिला-ठाणे वासी कविता पनोत ने बीएससी (नर्सिंग-इंदौर,म.प्र.)की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्य क्षेत्र-नर्स एवं नर्सिंग प्राध्यापक का रहा,जबकि वर्तमान में गृहिणी हैं। लेखन विधा-कविता एवं किसी भी विषय पर आलेखन है। १९९७ से लेखन में रत कविता पनोत की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। फिलहाल स्वयं की किताब पर काम जारी है। श्रीमती पनोत के लेखन का उद्देश्य-इस रास्ते अपने-आपसे जुड़े रहना व हिन्दी साहित्य की सेवा करना है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक,कोई एक नहीं, सब अपनी अलग विशेषता रखते हैं। लेखन से जन जागरूकता की पक्षधर कविता पनोत के देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
‘मैं भारत देश की बेटी हूँ,
हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा
हिन्दी मेरी मातृ भाषा,
हिन्द प्रचारक बन चलो,
कुछ सहयोग हम भी बाँटें।

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