तुम न सुनो, यह गगन सुनेगा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ मेरे मानस के गीतों को,तुम न सुनो, यह गगन सुनेगा।कब अतीत को चाहा मैंने,नव निमेष ही मुझको भाया जिसने मेरे हृदय पटल परअभिनव जग का चित्र बनाया।नूतन जग के इन भावों को,मेरे भव का भवन सुनेगा॥ निश दिन दौड़ी मरु में मृग-सी,जीवन से भी प्रीति हटाईकिन्तु नहीं उस पार क्षितिज के,अपनी कुटी बना … Read more