श्याम-वियोगिनी गोपियाँ
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************* घन श्याम अजिर में बरस रहे, सखि री! घनश्याम नहीं आए।अम्बर में शम्बर गरज रहे, चपला चमके जी घबराए॥ दूरी को सहना है मुश्किल,खो गए कहाँ प्रिय कन्हाई,मौसम पावस का आ पहुँचा,रुत है मादक पर नहिं भाई।मेघों का नर्तन है नभ में,मन भी लेता है अँगड़ाई,पर विरह आज रिपु बनकर … Read more