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शिखर पहुँच झंडा फहराएं

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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आओ हम इक गीत सुनायें,
भारत माँ की कीरति गायें।
भारत की प्राचीर हिमाला
शिखर पहुँच झंडा फहरायें॥

दक्षिण सागर चरण पखारे,
प्राची रवि आरती उतारे
छाई है चहुं दिश हरियाली,
प्राणों को सुख देने वाली।
लहर-लहर खेतों में अपने,
फसल खड़ी लहराये।
भारत की प्राचीर…॥

भारत का हर कण है प्यारा,
जिसमें बसता प्राण हमारा
ऐसे भारत में रहता हूँ,
कथा उसी की मैं कहता हूँ।
जान लुटा दें जिसकी खातिर,
गीत उसी के गायें।
भारत की प्राचीर…॥

संस्कार हैं यहां निराले,
सारे हैं ऋषि-मुनियों वाले
शिष्टाचार सदाचारी सब,
इज्जत सबकी करने वाले।
संस्कृति यही देश की अपने,
इसका पाठ पढ़ायें।
भारत की प्राचीर…॥

यहां सभी मिलकर रहते हैं,
विपदाएं हँसकर सहते हैं
नहीं पराया कोई यहां पर,
इक-दूजे खातिर ‌मरते हैं।
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर,
सबको गले लगायें।
भारत की प्राचीर…॥

गाँवों के हैं ठाठ निराले,
दूध-दही के बहते नाले
वो पीपल की छाँव सुहानी,
निर्मल शुद्ध कुएँ का पानी।
छोड़ शहर की असुविधायें,
गाँवों में बस जायें।
भारत की प्राचीर…॥

पावन वातावरण है यहाँ,
ये सुख मिले शहर में कहाँ
वृक्षों की यहां लगी कतारें,
बिखरी चारों तरफ बहारें।
रखें धरा को हरा-भरा हम,
आओ वृक्ष लगायें।
भारत की प्राचीर…॥

खेतों में फसलें लहरायें,
कृषक सभी मन में हरषायें
गोधुलि बेला में चरवाहे,
ढोर चरा खेतों से आयें।
आओ हम बाँसुरी बजा कर,
गीत सावनी गायें।
भारत की प्राचीर…॥

स्वर्ग यही भारत है अपना,
जन्म यहीं लूँ ये ही सपना
भारत माता के चरणों में,
मैं भी अपना तन-मन वारूँ।
सीमा पर कुर्बाँ होकर हम,
लिपट तिरंगे आयें।
भारत की प्राचीर…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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