है एक सहेली कुटिया में
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ सब अपनी-अपनी राह गये,मैं हुई अकेली कुटिया में। बेटे सरकारी नौकर हैं,बेटी हो गई सासरे कीसब पास-पड़ोसी ऐंठे हैं,क्या आशा करूं आसरे की।कुटिया ने ही देखी मेरी,जो पीड़ा झेली कुटिया में…॥ जन्मी तो हाथों-हाथ रही,रोयी तो झूली पलना मेंजब वृद्ध हुई तो समझ सकी,मैं फूल रही थी छलना में।सब लगे बूझने बुढ़िया को,मैं … Read more