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है एक सहेली कुटिया में

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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सब अपनी-अपनी राह गये,
मैं हुई अकेली कुटिया में।

बेटे सरकारी नौकर हैं,
बेटी हो गई सासरे की
सब पास-पड़ोसी ऐंठे हैं,
क्या आशा करूं आसरे की।
कुटिया ने ही देखी मेरी,
जो पीड़ा झेली कुटिया में…॥

जन्मी तो हाथों-हाथ रही,
रोयी तो झूली पलना में
जब वृद्ध हुई तो समझ सकी,
मैं फूल रही थी छलना में।
सब लगे बूझने बुढ़िया को,
मैं बनी पहेली कुटिया में…॥

जीवन भर देती रही सिर्फ,
कुछ बचा नहीं निज झोली में
रह गई चंद कड़ुवी-मीठी,
यादें बूढ़ों की टोली में।
वे खेल रहे अपनी पारी,
जो मैं थी खेली कुटिया में…॥

अब गेंद सरीका जीवन है,
कब किसकी पाली में जाये
जो जितना अधिक उछाल सके,
वह उतना विजयी कहलाये।
इसने फेंका उसने लोका,
है ठेलम-ठेली कुटिया में…॥

मैं हुई उसी दिन से बूढ़ी,
औ मिली पुरानी पीढ़ी में
उस दिन से की गिनती मेरी,
बेटों ने अंतिम सीढ़ी में।
जिस दिन आई लक्ष्मी बन कर,
इक नई नवेली कुटिया में…॥

मेरी ममता का मोल गया,
उसकी चुपड़ी यों रँग लाई
वह जिसे घुमाये घूम चले,
जैैसे हो चुम्बक बन आई।
वो मीठी बेल चढ़ी सिर पर,
मैं बनी करेली कुटिया में…॥

सत्ता छीनी पत्ता काटा,
मैं सिकुड़ गई इक कोने में
बेटा समझे आराम करे,
माँ हरदम नरम बिछौने में।
पत्नी पर गर्व हुआ उसको,
सुख-शांति उड़ेले कुटिया में…॥

अनुभव की हुई पिटारी मैं,
विधि ने दे डाले दु:ख सारे
जब आया सफर वापसी का,
दुनिया ने छीने सुख सारे।
पापड़ भी बेले जीवन भर,
रोटी भी बेली कुटिया में…॥

मेरी मानो यह है सचमुच,
जग से जाने की तैयारी
जो पहुंच चुके हैं मंजिल तक,
उनकी राहों से क्या यारी।
चैन मिला जब धीरज की,
यह ज्योति उजेली कुटिया में…॥

अब गाथा कौन सुने मेरी,
किसको सुनने की है फुर्सत
जिनको थी मेरी चाहत कल,
अब उनकी मुझे जरूरत है।
हर दर्द बंटाने को कविता,
है एक सहेली कुटिया में…॥

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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