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तुम गीतों का विषय हो गईं

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि….

गाते-गाते गीत सदा ही,
तुम गीतों का विषय हो गईं।
स्वर साम्राग्यी अमर कोकिला,
किस दुनिया में विलय हो गई॥

मैंने तुम पर गीत लिखा जो
दीदी इसे अमर कर देना।
मीठे स्वर देकर इसकी भी,
प्रतिध्वनि अम्बर में भर देना।
प्रतिध्वनि सुनकर ही समझूंगी,
दीदी मुझ पर सदय हो गईं॥

सरस्वती माँ की पुत्री बन,
तुम साक्षात धरा पर आईं।
जन्म लिया भारत में तुमने,
हम पर कृपा अजब बरसाईं।
क्या सौभाग्य मिला भारत को,
स्वर सरगम का निलय हो गईं॥

देश-भक्ति कैसी होती है,
तुमने ही यह हमें सिखाया।
अक्षर-अक्षर दर्द सम्पुटित,
अमर शहीदों पर जो गाया।
तुमने स्वर छेड़े औ रण में,
स्वयं हमारी विजय हो गई॥

आज नहीं थमते हैं आँसू,
ऐसी विकट सुनामी आई।
रह-रह प्राण उमगते बाहर,
ऐसी उन पर विपदा छाई।
दीदी मधुर तुम्हारी वाणी,
इन कानों को प्रणय हो गई॥

तुम नभ,थल,जल की स्वर लहरी,
धरती पर ही कब तक रहतीं।
धरती का आनन्द गगन की,
तारावलियां कब तक सहतीं।
अनुपमेय गुण ग्यान कर्म से,
मानव मन पर अजय हो गईं॥

तुम त्योहार तुम्हीं हो उत्सव,ऊँ,
तुम ही हो होली दीवाली।
दिशा-दिशा में छलका करती,
‘लता’ कंठ की अमृत प्याली।
एक तुम्हारे मधुमय स्वर से,
दुनिया सारी अभय हो गई॥

अब आवाज़ कहां से लाऊँ,
किससे अपना गीत गवाऊँ।
स्वर कोकिला तुम्हीं बतलाओ,
अब किसका मैं कंठ चुराऊँ।
तुम क्या गईं स्वरों की देवी,
एक हताशा प्रलय हो गई॥

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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