आँखें तरस गई…
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयीजबलपुर (मध्यप्रदेश)*********************************** जीना तड़प-तड़प के तकदीर बन गई।तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गई॥ तुमको देखने प्रिये मेरी आँखें तरस गईं,स्मृतियों के मेघ छाये सावन सी बरस गईये सूरज भी हँस-हँस के मुझे ताने है मारता,संध्या के बहाने वो बस मुझको ही ताकता।मीठी ये पुरवाई भी नागिन-सी डस गई,तुमको देखने प्रिये मेरी … Read more