फागुन की अठखेलियाँ
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ************************************** रंगों के सँग खेलती,एक नवल-सी आस।मन में पलने लग गया,फिर नेहिल विश्वास॥ लगे गुलाबी ठंड पर,आतपमय जज़्बात।प्रिये-मिलन के काल में,यादें सारी रात॥ कुंजन,क्यारिन खेलता,मोहक रूप बसंत।अनुरागी की बात क्या,तोड़ रहे तप संत॥ बौराया-सा लग रहा,देखो तो मधुमास।प्रीति-प्रणय के भाव का,है हर दिल में वास॥ अपनापन है पल्लवित,पुष्पित है अनुराग।सभी ओर … Read more