युद्ध-आतंक के दौर में शांति के लिए भारत की महती पुकार

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ (२१ सितम्बर) विशेष… ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाना आज के समय की सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। जब पूरी दुनिया युद्ध, हिंसा, आतंकवाद, जलवायु संकट और असमानताओं के दौर से गुजर रही हो, तब शांति का महत्व केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार बन जाता है। इतिहास गवाह … Read more

गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं पितर

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएँ पितरों को कैसे मिलती है ?कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन … Read more

गौरवपूर्ण पहचान के रूप में अपनाएं हिन्दी को

पद्मा अग्रवालबैंगलोर (कर्नाटक)************************************ भारत ऐसा देश है, जहाँ हर कुछ किलोमीटर के बाद भाषा और बोली बदल जाती है। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विविधता का प्रमाण है। बहुत पुरानी कहावत है- “कोस कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी।”हिंदी हमारे स्वाभिमान और गर्व की भाषा है। यह पूरे विश्व में बोली … Read more

‘नवरंग’ का गीत-संगीत आज भी सतरंगी

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ सन १९५९ में प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘नवरंग’ के गीत और संगीत आज इतने वर्षों बाद भी दिल को छू लेता है। बहुत सुकुन देने वाली धुनें हैं, फिल्म का संगीत अपने-आपमें बहुत ही कर्णप्रिय था। संध्या व वी. शांताराम और संगीतकार सी. रामचंद्र ने जो सुर और ताल के साथ … Read more

हिन्दी समाचार कार्यक्रमों का अंग्रेजीकरण एवं उर्दूकरण तत्काल रोकने की मांग

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प्रति,संयुक्त सचिव,राजभाषा विभाग, नई दिल्ली विषय-प्रसार भारती द्वारा हिन्दी समाचार कार्यक्रमों का सुनियोजित अंग्रेजीकरण एवं उर्दूकरण तत्काल रोकने की मांग। महोदय, ◾वर्तमान स्थिति:हिन्दी समाचारों में हिंग्लिश और उर्दू मिश्रित भाषा का व्यापक प्रयोग हो रहा है। देवनागरी लिपि का क्रमिक उन्मूलन किया जा रहा है और रोमन लिपि का अनावश्यक प्रयोग बढ़ाया जा रहा है। … Read more

सृष्टि बचाने के लिए संयुक्त परिवार आवश्यक

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)******************************************* बहुत पीछे न जाते हुए यदि मैं अपनी ही बात करूँ तो हर घर में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-ताया, बुआ, माता-पिता के साथ अपने भाई-बहन और चाचा-ताया के बच्चे प्रायः एक छोटे से परिवार में संयुक्त रहते थे। जब माता-पिता स्वयं दादा-दादी बन जाते और दादा-दादी परलोक गमन कर जाते, तब बंटवारा होता … Read more

समय है कि आतिशबाज़ी रहित त्योहार गढ़ें

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** पर्यावरण संकट हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों की लगातार हो रही क्षति ने जीवन को असहज और असुरक्षित बना दिया है। यह संकट किसी दूर के भविष्य की चिंता नहीं है, बल्कि रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रहा है। राजधानी … Read more

सुरमयी संध्या तले

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* धीरे-धीरे संध्या बिल्ली के कदमों से कब जमीं पर उतर आई, पता ही नहीं चला। दूर पश्चिम की देहरी पर कुछ सिंदूरी बादल अभी भी रेंग रहे हैं। सूरज के पदचिन्ह संजोते क्षितिज अभी भी अपना रंग धारण किए हुए है। दूर-दूर तक फैली मक्का, बाजरा, सोयाबीन के विस्तीर्ण फैले खेतों … Read more

फर्नीचर

डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्लइन्दौर (मध्यप्रदेश)***************************************** “सक्सेना साहब! इन दिनों जब भी प्रोफेसर सुशील कुमार मिलते हैं तो घर जरूर बुलाते हैं।”“मुझे मालूम है कि वह क्यों बुला रहे हैं ?”“क्यों शर्मा जी…?”“… अभी उन्होंने ५०-६० लाख का नया फर्नीचर बनवाया है। वह उसी को दिखाने के लिए सभी को आमंत्रित किया करते हैं। मुझे भी … Read more

आम के आम और गुठलियों के दाम

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** इसका अर्थ है किसी वस्तु से २ तरह के फायदे लेना यानी आम खाने का फायदा और उसकी गुठलियों को बेकार न समझकर उससे भी कुछ कमाई करना। यानी दोहरा लाभ कमाना। आज कूड़े का निस्तारण एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। निरंतर कूड़े के पहाड़ खड़े हो रहे हैं। ऊपर … Read more