शहरों से गाँवों तक डिजिटल मीडिया की क्रांतिकारी लहर

डॉ. शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** भारत में डिजिटल क्रांति ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है। २०२५ तक भारत में इंटरनेट उपयोग कर्ताओं की संख्या ९० करोड़ को पार कर चुकी है, जिसमें ६० प्रतिशत से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। स्टेटिस्टा के अनुसार ग्रामीण भारत में स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या ४० करोड़ से अधिक हो गई है, … Read more

जेब-कतरे परेशान…

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** जबसे ऑनलाइन भुगतान आरम्भ हुआ है, तब से आदमी ने तो जेब में पैसे रखना बंद कर दिया है। अब वे जेब में क्रेडिट कार्ड रखते हैं, या मोबाईल से भुगतान करते हैं। इस कारण हमारे समाज का एक जेब-कतरा वर्ग बेरोजगार हो गया है…। इतना खतरा मोलकर जब … Read more

मनसा का मातमःपुरानी गलतियों से सबक नहीं

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में बिजली का तार टूटने और करंट फैलने की एक अफवाह ने कई जानें ले लीं, जिसने धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। किसी धार्मिक स्थल पर भगदड़ की यह पहली घटना नहीं, लेकिन अफसोस है कि पुरानी गलतियों … Read more

राष्ट्रीय शिक्षा नीति:५ वर्ष-कार्यान्वयन की बाधाएँ और समाधान

डॉ. शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** २०२० में जब भारत सरकार ने नई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ को प्रस्तुत किया, तो यह देश के शिक्षा जगत में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। यह नीति न केवल औपचारिक शिक्षा प्रणाली में सुधार की बात करती है, बल्कि शिक्षा को भारतीय संस्कृति से जोड़ने, वैश्विक प्रतिस्पर्धा हेतु तैयार करने और … Read more

‘ऑपरेशन सिंदूर’:बेहतर हो कि विपक्ष चर्चा ही करे

अजय जैन ‘विकल्प’इंदौर (मध्यप्रदेश)****************************************** संसद में चर्चा से भागना विपक्ष की रणनीति तो नहीं होनी चाहिए क्योंकि देश को भी यह जानने का अधिकार है कि आखिर सच क्या है, विपक्ष का लगातार हंगामा देखकर ऐसा लगता है कि वो सच को बाहर आने से रोकने में लगे हुए हैं। ऐसे में सवाल यह है … Read more

जहर घोलता अकेलापन, फिर से इंसान बनें

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** “हर छठा व्यक्ति अकेला है”-यह निष्कर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताज़ा रिपोर्ट का है, जिसने पूरी दुनिया को चिन्ता में डाला है एवं सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर हम कैसी समाज-संरचना कर रहे हैं, जो इंसान को अकेला बना रही है। निश्चित ही बढ़ता अकेलापन कोई साधारण सामाजिक, पारिवारिक … Read more

हरियाली के मनोरम साए

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* कहा जाता है, “शहर की दवा और गाँव की हवा दोनों बराबर होती है”, विगत दिनों इस बात का मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। उत्तर महाराष्ट्र के खेतों में इन दिनों बाजरा और मक्का की फसल लहलहा रही है। बड़ी जोरदार फसलें हैं। हरियाली से खिले खेतों के विस्तीर्ण पट, जंगलों में … Read more

‘विकास’ के हर कदम पर मिले ‘हरियाली’ का आशीर्वाद

पूनम चतुर्वेदीलखनऊ (उत्तरप्रदेश)********************************************** भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में ‘हरियाली’ और ‘विकास’ को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है। विकास का मतलब होता है आर्थिक तरक्की, आधारभूत संरचना का निर्माण, रोज़गार का सृजन और जीवन की गुणवत्ता में सुधार;वहीं हरियाली का तात्पर्य है–प्रकृति का संरक्षण, वन्य जीवन की सुरक्षा, जलवायु संतुलन और … Read more

महिलाएँ और जघन्य अपराध-बेहद चिंताजनक

पद्मा अग्रवालबैंगलोर (कर्नाटक)************************************ भारतीय समाज में विवाह को सात जन्मों का पवित्र बंधन कहा जाता है, जहाँ पति-पत्नी एक-दूसरे के साथी, सहयोगी और संबल होते हैं, परंतु विगत कुछ समय से जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वह मन को बहुत व्यथित करती हैं। वह इस पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तार-तार करती प्रतीत होती … Read more

बम धमाका: बड़ा सवाल-दोषी कौन ?

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** ११ जुलाई २००६ को मुम्बई की भीड़भरी स्थानीय ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया था। इसने पीड़ित परिवारों के साथ-साथ जन-जन को आहत किया था। ७ जगह पर हुए इन धमाकों में १८७ निर्दाेष लोगों की जान गई और ८२४ से ज्यादा लोग घायल … Read more