गर्मी
डॉ.एन.के. सेठीबांदीकुई (राजस्थान) ********************************************* दोपहरी की धूप से,बढ़ा ताप चहुँ ओर।तप्त तवे सी है धरा,पवन मचाए शोर॥पवन मचाए शोर,नहीं यह मौसम भाता।गर्मी का ये रूप,सभी को ये झुलसाता॥कहता कवि करजोरि,लगे अब रात सुनहरी।तन पर बहता स्वेद,रहे अब गरम दुपहरी॥ गरमी के इस ताप से,सूखे ताल तड़ाग।सूरज भी झुलसा रहा,बरसाता है आग॥बरसाता है आग,विकल हैं प्राणी … Read more