कल-कल करती नदिया
तारा प्रजापत ‘प्रीत’रातानाड़ा(राजस्थान) ****************************************** पर्वत के वो शिखर से निकलेधरती के सीने पर फिसले,कोई उससे कुछ भी कह लेसबकी बातें हँस कर सह ले।इसकी कहानी कहेंगी सदियां,कल-कल करती बहती नदिया॥ इठलाती-बलखाती चलतीकभी-कभी वो ख़ूब मचलती,उसके जल से दुनिया पलतीहरदम बहती,कभी न थकती।इसकी कहानी कहेंगी सदियां,कल-कल करती बहती नदिया॥ सृष्टि को वो जीवन देतीसबके कष्टों को हर … Read more